Book Title: Agam 04 Samvayang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 50
________________ आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय' समवाय/ सूत्रांक समवाय-५२ सूत्र-१३० मोहनीय कर्म के बावन नाम कहे गए हैं । जैसे-क्रोध, कोप, रोष, द्वेष, अक्षमा, संज्वलन, कलह, चंडिक्य, भंडन, विवाद, मान, मद, दर्प, स्तम्भ, आत्मोत्कर्ष, गर्व, परपरिवाद, अपकर्ष, परिभव, उन्नत, उन्नाम, माया, उपधि, निकृति, वलय, गहन, न्यवम, कल्क, कुरुक, दंभ, कूट, जिम्ह, किल्बिष, अनाचरणता, गृहनता, वंचनता, पलिकुंच-नता, सातियोग, लोभ, ईच्छा, मूर्छा, कांक्षा, गृद्धि, तृष्णा, भिध्या, अभिध्या, कामाशा, भोगाशा, जीविताशा, मरणाशा, नन्दी, राग। गोस्तूभ आवास पर्वत के पूर्वी चरमान्त भाग से वडवामुख महापाताल का पश्चिमी चरमान्त बाधा के बिना बावन हजार योजन अन्तर वाला कहा गया है । इसी प्रकार लवण समुद्र के भीतर अवस्थित दकभास केतुक का, शंख नामक जूपक का और दकसीम नामक ईश्वर का, इन चारों महापाताल कलशों का भी अन्तर जानना चाहिए ज्ञानावरणीय, नाम और अन्तराय इन तीनों कर्मप्रकृतियों की उत्तरप्रकृतियाँ बावन हैं। सौधर्म, सनत्कुमार और माहेन्द्र इन तीन कल्पों में बावन लाख विमानावास हैं। समवाय-५२ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण समवाय-५३ सूत्र - १३१ देवकुरु और उत्तरकुरु की जीवाएं तिरेपन-तिरेपन हजार योजन से कुछ अधिक लम्बी कही गई हैं । महाहिमवन्त और रुक्मी वर्षधर पर्वतों की जीवाएं तिरेपन-तिरेपन हजार नौ सौ इकतीस योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से छह भाग प्रमाण लम्बी कही गई हैं। श्रमण भगवान महावीर के तिरेपन अनगार एक वर्ष श्रमणपर्याय पालकर महान् विस्तीर्ण एवं अत्यन्त सुखमय पाँच अनुत्तर महाविमानों में देवरूप में उत्पन्न हुए। सम्मूर्छिम उरपरिसर्प जीवों की उत्कृष्ट स्थिति तिरेपन हजार वर्ष कही गई है। समवाय-५३ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण समवाय-५४ सूत्र-१३२ भरत और ऐरवत क्षेत्रों में एक एक उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल में चौपन चौपन उत्तम पुरुष उत्पन्न हुए हैं, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे । जैसे-चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलदेव और नौ वासुदेव । अरिष्टनेमि अर्हन् चौपन रात-दिन छद्मस्थ श्रमणपर्याय पालकर केवली, सर्वज्ञ, सर्वभावदर्शी जिन हुए। श्रमण भगवान महावीर ने एक दिन में एक आसन से बैठे हुए चौपन प्रश्नों के उत्तररूप व्याख्यान दिए थे। अनन्त अर्हन के चौपन गण और चौपन गणधर थे। समवाय-५४ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 50

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