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आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय'
समवाय/ सूत्रांक
समवाय-८९ सूत्र-१६८
कौशलिक ऋषभ अर्हत् इसी अवसर्पिणी के तीसरे सुषमदुषमा आरे के पश्चिम भाग में नवासी अर्धमासों (३ वर्ष,८ मास, १५ दिन) के शेष रहने पर कालगत होकर सिद्ध, बुद्ध, कर्म-मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए।
श्रमण भगवान महावीर इसी अवसर्पिणी के चौथे दुःषमसुषमा काल के अन्तिम भाग में नवासी अर्धमासों (३ वर्ष, ८ मास, १५ दिन) के शेष रहने पर कालगत होकर सिद्ध, बुद्ध, कर्ममुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए।
चातुरन्त चक्रवर्ती हरिषेण राजा ८९०० वर्ष महासाम्राज्य पद पर आसीन रहे। शान्तिनाथ अर्हत् के संघ में ८९०० आर्यिकाओं की उत्कृष्ट आर्यिकासम्पदा थी।
समवाय-८९ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय-९० सूत्र-१६९
शीतल अर्हत नब्बे धनुष ऊंचे थे । अजित अर्हत के नब्बे गण और नब्बे गणधर थे । इसी प्रकार शान्ति जिन के नब्बे गण और नब्बे गणधर थे।
स्वयम्भू वासुदेव ने नब्बे वर्ष में पृथ्वी को विजय किया था।
सभी वृत्त वैताढ्य पर्वतों के ऊपरी शिखर से सौगन्धिककाण्ड का नीचे का चरमान्त भाग ९००० योजन अन्तर वाला है।
समवाय-९० का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय-९१ सूत्र-१७०
पर-वैयावृत्यकर्म प्रतिमाएं इक्यानवे कही गई हैं। कालोद समुद्र परिक्षेप की अपेक्षा कुछ अधिक इक्यानवे लाख योजन है। कुन्थु अर्हत् के संघ में ९१०० नियत क्षेत्र को विषय करने वाले अवधिज्ञानी थे । आयु और गोत्रकर्म को छोड़कर शेष छह कर्मप्रकृतियों की उत्तर प्रकतियाँ इक्यानवे कही गई हैं।
समवाय-९१ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय-९२ सूत्र-१७१
प्रतिमाएं बानवे कही गई हैं।
स्थविर इन्द्रभूति बानवे वर्ष की आयु भोगकर सिद्ध, बुद्ध, (कर्ममुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित) हुए।
मन्दर पर्वत के बहमध्य देशभाग से गोस्तूप आवासपर्वत का पश्चिमी चरमान्त भाग बानवे हजार योजन के अन्तर वाला है। इसी प्रकार चारों ही आवासपर्वतों का अन्तर जानना चाहिए।
समवाय-९२ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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