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आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय'
समवाय/ सूत्रांक समवाय-९३ सूत्र - १७२
चन्द्रप्रभ अर्हत के तिरानवे गण और तिरानवे गणधर थे। शान्ति अर्हत् के संघ में ९३०० चतुर्दशपूर्वी थे।
दक्षिणायन में उत्तरायण को जाते हए, अथवा उत्तरायण से दक्षिणायन को लौटते हए तिरानवे मण्डल पर परिभ्रमण करता हुआ सूर्य सम अहोरात्र को विषम करता है।
समवाय-९३ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय-९४ सूत्र-१७३
निषध और नीलवन्त वर्षधर पर्वतों की जीवाएं चौरानवे हजार एक सौ छप्पन योजन तथा एक योजन के उन्नीस भागों में से दो भाग प्रमाण लम्बी कही गई हैं। अजित अर्हत् के संघ में ९४०० अवधिज्ञानी थे।
समवाय-९४ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय-९५ सूत्र - १७४
सुपार्श्व अर्हत् के पंचानवे गण और पंचानवे गणधर थे।
इस जम्बूद्वीप के चरमान्त भाग से चारों दिशाओं में लवण समुद्र के भीतर पंचानवे-पंचानवे हजार योजन अवगाहन करने पर चार महापाताल हैं । जैसे-१. वड़वामुख, २. केतुक, ३. यूपक और ४. ईश्वर । लवण समुद्र के उभय पार्श्व पंचानवे-पंचानवे प्रदेश पर उद्वेध (गहराई) और उत्सेध (ऊंचाई) वाले कहे गए हैं।
कुन्थु अर्हत् पंचानवे हजार वर्ष की परमायु भोगकर सिद्ध, बुद्ध, कर्ममुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए । स्थविर मौर्यपुत्र पंचानवे वर्ष की आयु भोगकर सिद्ध, बुद्ध, कर्ममुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए।
समवाय-९५ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय-९६ सूत्र - १७५
प्रत्येक चातुरन्त चक्रवर्ती राजा के छयानवे-छयानवे करोड ग्राम थे। वायुकुमार देवों के छयानवे लाख आवास (भवन) कहे गए हैं।
व्यावहारिक दण्ड अंगुल के माप से छयानवे अंगुल-प्रमाण होता है । इसी प्रकार धनुष, नालिका, युग, अक्ष और मुशल भी जानना चाहिए।
आभ्यन्तर मण्डल पर सूर्य के संचार करते समय आदि (प्रथम) मुहूर्त छयानवे अंगुल की छाया वाला कहा गया है।
समवाय-९६ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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