Book Title: Agam 04 Samvayang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 69
________________ आगम सूत्र ४, अंगसूत्र- ४, 'समवाय ' सूत्र - २०३ जम्बूद्वीप एक लाख योजन आयाम - विष्कम्भ वाला कहा गया है । सूत्र - २०४ लवण समुद्र चक्रवाल विष्कम्भ से दो लाख योजन चौड़ा कहा गया है। सूत्र २०५ पार्श्व अर्हत् के संघ में तीन लाख सत्ताईस हजार श्राविकाओं की उत्कृष्ट सम्पदा थी । सूत्र २०६ धातकीखण्ड नामक द्वीप चक्रवालविष्कम्भ की अपेक्षा चार लाख योजन चौड़ा कहा गया है। सूत्र २०७ लवणसमुद्र के पूर्वी चरमान्त भाग से पश्चिमी चरमान्त भाग का अन्तर पाँच लाख योजन है । सूत्र - २०८ चातुरन्त चक्रवर्ती भरत राजा साठ लाख पूर्व वर्ष राजपद पर आसीन रहकर मुण्डित हो अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए। समवाय / सूत्रांक सूत्र - २०९ इस जम्बूद्वीप की पूर्वी वेदिका के अन्त से धातकीखण्ड के चक्रवाल विष्कम्भ का पश्चिमी चरमान्त भाग सात लाख योजन के अन्तर वाला है । सूत्र - २१० माहेन्द्र कल्प में आठ लाख विमानावास कहे गए हैं । सूत्र - २११ अजित अर्हन् के संघ में कुछ अधिक नौ हजार अवधिज्ञानी थे । (सूत्र २०१ में देखिए यह सूत्र वहाँ होना चाहिए)। सूत्र २२२ पुरुषसिंह वासुदेव दश लाख वर्ष की कुल आयु को भोगकर पाँचवी नारकपृथ्वी में नारक रूप से उत्पन्न हुए । सूत्र - २१३ श्रमण भगवान महावीर तीर्थंकर भव ग्रहण करने से पूर्व छठे पोट्टिल के भव में एक कोटि वर्ष श्रमणपर्याय पालकर सहस्रार कल्प में सर्वार्थविमान में देवरूप से उत्पन्न हुए थे। सूत्र - २१४ भगवान श्री ऋषभदेव का और अन्तिम भगवान महावीर वर्धमान का अन्तर एक कोड़ा कोड़ी सागरोपम कहा गया है। सूत्र - २१५ गणिपिटक द्वादश अंग स्वरूप है । वे अंग इस प्रकार हैं- आचार, सूत्रकृत, स्थान, समवाय, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृत्दशा, अनुत्तरोपपातिक दशा, प्रश्नव्याकरण, विपाकसूत्र और दृष्टिवाद । यह आचारांग क्या है ? इसमें क्या वर्णन किया गया है ? आचारांग में श्रमण निर्ग्रन्थों के आचार, गौचरी, विनय, वैनयिक, स्थान, गमन, चंक्रमण, प्रमाण, योगयोजन, भाषा, समिति, गुप्ति, शय्या, उपधि, भक्त, पान, उद्गम, उत्पादन, एषणाविशुद्धि, शुद्धग्रहण, अशुद्धग्रहण, व्रत, नियम, तप और उपधान इनका सुप्रशस्त रूप से कथन किया गया है। आचार संक्षेप से पाँच प्रकार का है। ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचार । इस आचार का प्रतिपादन करने वाला शास्त्र भी आचार कहलाता है । आचारांग की परिमित सूत्रार्थप्रदान रूप Page 69 मुनि दीपरत्नसागर कृत् (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" "

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