________________
आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय'
समवाय/ सूत्रांक संख्यात श्लोक हैं, संख्यात निर्युक्तियाँ हैं और संख्यात संग्रहणियाँ हैं ।
यह विपाकसूत्र अंगरूप से ग्यारहवा अंग है । बीस अध्ययन है, बीस उद्देशन-काल है, बीस समुद्देशन-काल है, पद-गणना की अपेक्षा संख्यात लाख पद हैं । संख्यात अक्षर है, अनन्त गम है, अनन्त पर्याय है, परीत त्रस है, अनन्त स्थावर है । इसमें शाश्वत, कृत, निबद्ध, निकाचित भाव कहे जाते हैं, प्रज्ञापित किये जाते हैं, प्ररूपित किये जाते हैं, निदर्शित किये जाते हैं और उपदर्शित किये जाते हैं । इस अंग के द्वारा आत्मा ज्ञाता होता है, विज्ञाता होता है । इस प्रकार चरण और करण की प्ररूपणा के द्वारा वस्तुस्वरूप का कथन, प्रज्ञापन, निदर्शन और उपदर्शन किया जाता है। यह ग्यारहवे विपाक सूत्र अंग का परिचय है। सूत्र-२२८
यह दृष्टिवाद अंग क्या है-इसमें क्या वर्णन है ?
दृष्टिवाद अंग में सर्व भावों की प्ररूपणा की जाती है । वह संक्षेप से पाँच प्रकार का कहा गया है । जैसेपरिकर्म, सूत्र, पूर्वगत, अनुयोग और चूलिका ।
परिकर्म क्या है ? परिकर्म सात प्रकार का कहा गया है। जैसे-सिद्धश्रेणीका परिकर्म, मनुष्यश्रेणिका परिकर्म, पृष्टश्रेणिका परिकर्म, अवगाहनश्रेणिका परिकर्म, उपसंपद्यश्रेणिका परिकर्म, विप्रजहतश्रेणिका परिकर्म और च्युताच्युतश्रेणिका परिकर्म।
सिद्धश्रेणिका परिकर्म क्या है ? सिद्धश्रेणिका परिकर्म चौदह प्रकार का कहा गया है । जैसे-मातृकापद, एकार्थकपद, अर्थपद, पाठ, आकाशपद, केतुभूत, राशिबद्ध, एकगुण, द्विगुण, त्रिगुण, केतुभूतप्रतिग्रह, संसारप्रतिग्रह, नन्द्यावर्त और सिद्धबद्ध । यह सब सिद्ध श्रेणिका परिकर्म हैं।
मनुष्यश्रेणिका-परिकर्म क्या है ? मनुष्यश्रेणिका-परिकर्म चौदह प्रकार का कहा गया है । जैसे-मातृकापद से लेकर वे ही पूर्वोक्त नन्द्यावर्त तक और मनुष्यबद्ध । यह सब मनुष्यश्रेणिका परिकर्म हैं ।
पष्ठश्रेणिका परिकर्म से लेकर शेष परिकर्म ग्यारह-ग्यारह प्रकार के कहे गए हैं। पूर्वोक्त सातों परिकर्म स्वसामयिक (जैनमतानुसारी) हैं, सात आजीविकामतानुसारी हैं, छह परिकर्म चतुष्कनय वालों के मतानुसारी हैं और सात त्रैराशिक मतानुसारी हैं । इस प्रकार ये सातों परिकर्म पूर्वापर भेदों की अपेक्षा तिरासी होते हैं, यह सब परिकर्म हैं
सूत्र का स्वरूप क्या है ? सूत्र अठासी होते हैं, ऐसा कहा गया है । जैसे-१. ऋजुक, २. परिणतापरिणत, ३. बहुभंगिक, ४. विजयचर्या, ५. अनन्तर, ६. परम्पर, ७. समान (समानस), ८. संजूह-संयूथ, ९. संभिन्न, १०. अहाच्चय, ११. सौवस्तिक, १२. नन्द्यावर्त, १३. बहुल, १४. पृष्टापृष्ट, १५. व्यावृत्त, १६. एवंभूत, १७. द्वयावर्त, १८. वर्तमानात्मक, १९. समभिरूढ, २०. सर्वतोभद्र, २१. पणाम (पण्णास) और २२. दुष्प्रतिग्रह । ये बाईस सूत्र स्वसमयसूत्र परिपाटी से छिन्नच्छेद-नयिक हैं । ये ही बाईस सूत्र आजीविकसूत्रपरिपाटी से अच्छिन्नच्छेदनयिक हैं। ये ही बाईस सूत्र त्रैराशिकसूत्रपरिपाटी से त्रिकनयिक हैं और ये ही बाईस सूत्र स्वसमय सूत्रपरिपाटी से चतुष्कनयिक हैं । इस प्रकार ये सब पूर्वापर भेद मिलकर अठासी सूत्र होते हैं, ऐसा कहा गया है । यह सूत्र नाम का दूसरा भेद है।
यह पूर्वगत क्या है इसमें क्या वर्णन है ?
पूर्वगत चौदह प्रकार के कहे गए हैं । जैसे-उत्पादपूर्व, अग्रायणीयपूर्व, वीर्यप्रवादपूर्व, अस्तिनास्तिप्रवादपूर्व, ज्ञानप्रवादपूर्व, सत्यप्रवादपूर्व, आत्मप्रवादपूर्व, कर्मप्रवादपूर्व, प्रत्याख्यानप्रवादपूर्व, विद्यानुप्रवादपूर्व, अबन्ध्यपूर्व, प्राणायुपूर्व, क्रियाविशालपूर्व और लोकबिन्दुसारपूर्व ।
उत्पादपूर्व की दश वस्तु (अधिकार) हैं और चार चूलिकावस्तु है । अग्रायणीय पूर्व की चौदह वस्तु और बारह चूलिकावस्तु है । वीर्यप्रवादपूर्व की आठ वस्तु और आठ चूलिकावस्तु है । अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व की अठारह वस्तु और दश चूलिकावस्तु है । ज्ञानप्रवाद पूर्व की बारह वस्तु हैं । सत्यप्रवादपूर्व की दो वस्तु हैं । आत्मप्रवाद पूर्व की सोलह वस्तु हैं । कर्मप्रवाद पूर्व की तीस वस्तु हैं । प्रत्याख्यान पूर्व की बीस वस्तु हैं । विद्यानुप्रवादपूर्व की पन्द्रह वस्तु है । क्रियाविशाल पूर्व की तीस वस्तु है । लोकबिन्दुसारपूर्व की पच्चीस वस्तु कही गई हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 78