________________
आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय'
समवाय/ सूत्रांक लान्तक, शुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण, अच्युत कल्पों में, ग्रैवेयकों में और अनुत्तरों में वैमानिक देवों के चौरासी लाख सत्तानवे हजार और तेईस विमान हैं, ऐसा कहा गया है।
वे विमान सर्य की प्रभा के समान प्रभा वाले हैं. प्रकाशों की राशियों (पंजों) के समान भासर हैं, अरज (स्वाभाविक रज से रहित) हैं, नीरज (आगन्तुक रज से विहीन) हैं, निर्मल हैं, अन्धकाररहित हैं, विशुद्ध हैं, मरीचीयुक्त हैं, उद्योत-सहित हैं, मन को प्रसन्न करने वाले हैं, दर्शनीय हैं, अभिरूप हैं और प्रतिरूप हैं।
भगवन् ! सौधर्म कल्प में कितने विमानावास कहे गए हैं ?
गौतम ! सौधर्म कल्प में बत्तीस लाख विमानावास कहे गए हैं । इसी प्रकार ईशानादि शेष कल्पों में सहस्रार तक क्रमशः पूर्वोक्त गाथाओं के अनुसार अट्ठाईस लाख, बारह लाख, आठ लाख, चार लाख, पचास हजार, छह सौ तथा आनत प्राणत कल्प में चार सौ और आरण-अच्युत कल्प में तीन सौ विमान कहना चाहिए। सूत्र - २४२
सौधर्मकल्प में बत्तीस लाख विमान हैं। ईशानकल्प में अट्राईस लाख विमान हैं । सनत्कमार कल्प में बारह लाख विमान हैं । माहेन्द्रकल्प में आठ लाख विमान हैं । ब्रह्मकल्प में चार लाख विमान हैं । लान्तक कल्प में पचास हजार विमान हैं । महाशुक्र कल्प में चालीस हजार विमान हैं । सहस्रारकल्प में छह हजार विमान हैं । तथासूत्र - २४३
आनत, प्राणत कल्प में चार सौ विमान हैं। आरण और अच्युत कल्प में तीन सौ विमान हैं । इस प्रकार इन चारों ही कल्पों में विमानों की संख्या सात सौ हैं। सूत्र - २४४
अधस्तन-नीचे के तीनों ही ग्रैवेयकों में एक सौ ग्यारह विमान हैं । मध्यम तीनों ही ग्रैवेयकों में एक सौ सात विमान हैं । उपरिम तीनों ही ग्रैवेयकों में एक सौ विमान हैं। अनुत्तर विमान पाँच ही हैं। सूत्र - २४५
भगवन् ! नारकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? गौतम ! जघन्य स्थिति दश हजार वर्ष की और उत्कृष्ट स्थिति तैंतीस सागरोपम की कही गई है।
भगवन् ! अपर्याप्तक नारकों की कितने काल तक स्थिति कही गई है ? गौतम ! जघन्य भी अन्तर्मुहर्त की और उत्कृष्ट भी स्थिति अन्तर्मुहूर्त की कही गई है।
पर्याप्तक नारकियों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहर्त कम दश हजार वर्ष की और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहर्त्त कम तैंतीस सागरोपम की है । इसी प्रकार इस रत्नप्रभा पृथ्वी से लेकर महातम-प्रभा पृथ्वी तक अपर्याप्तक नारकियों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त की तथा पर्याप्तकों की स्थिति वहाँ की सामान्य, जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति से अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त कम जाननी चाहिए।
भगवन् ! विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित विमानवासी देवों की स्थिति कितने काल कही गई है ? गौतम ! जघन्य स्थिति बत्तीस सागरोपम और उत्कृष्ट स्थिति तैंतीस सागरोपम कही गई है।
सर्वार्थसिद्ध नामक अनुत्तर विमान में अजघन्य-अनुत्कृष्ट (उत्कृष्ट और जघन्य के भेद से रहित) सब देवों की तैंतीस सागरोपम की स्थिति कही गई है। सूत्र - २४६
भगवन् ! शरीर कितने कहे गए हैं ? गौतम ! शरीर पाँच कहे गए हैं-औदारिक शरीर, वैक्रिय शरीर, आहारक शरीर, तैजस शरीर और कार्मण शरीर ।
भगवन् ! औदारिक शरीर कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के कहे गए हैं । जैसेएकेन्द्रिय औदारिक शरीर, यावत् गर्भजमनुष्य पंचेन्द्रिय औदारिकशरीर तक जानना चाहिए।
भगवन् ! औदारिक शरीर वाले जीव की उत्कृष्ट शरीर-अवगाहना कितनी कही गई है ? गौतम ! (पृथ्वीकायिक आदि की अपेक्षा) जघन्य शरीर-अवगाहना अंगुल के असंख्यातवे भाग प्रमाण
मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 83