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आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय'
समवाय/ सूत्रांक हरि और हरिस्सह कूट को छोड़कर शेष सभी वक्षार पर्वत-कूट पाँच-पाँच सौ योजन ऊंचे और मूल में पाँच-पाँच सौ योजन आयाम-विष्कम्भ वाले कहे गए हैं । बलकूट को छोड़कर सभी नन्दनवन के कूट पाँच-पाँच सौ योजन ऊंचे और मूल में पाँच-पाँच सौ योजन आयाम-विष्कम्भ वाले कहे गए हैं।
सौधर्म और ईशान दोनों कल्पों में सभी विमान पाँच-पाँच सौ योजन ऊंचे हैं। सूत्र - १८८
सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्पों में विमान छह सौ योजन ऊंचे कहे गए हैं । क्षुल्लक हिमवन्त कूट के उपरिम चरमान्त से क्षुल्लक हिमवन्त वर्षधर पर्वत का समधरणीतल छह सौ योजन अन्तर वाला है। इसी प्रकार शिखरी कूट का भी अन्तर जानना चाहिए।
पार्श्व अर्हत् के छह सौ अपराजित वादियों की उत्कृष्ट वादिसम्पदा थी जो देव, मनुष्य और असुरों में से किसी से भी वाद में पराजित होने वाले नहीं थे।
अभिचन्द्र कुलकर छह सौ धनुष ऊंचे थे।
वासुपूज्य अर्हत् छह सौ पुरुषों के साथ मुण्डित होकर अनगा से अनगारिता में प्रव्रजित हुए थे। सूत्र-१८९
ब्रह्म और लान्तक इन दो कल्पों में विमान सात-सात सौ योजन ऊंचे हैं। श्रमण भगवान महावीर के संघ में सात सौ वैक्रिय लब्धिधारी साधु थे ।
अरिष्टनेमि अर्हत् कुछ कम सात सौ वर्ष केवलिपर्याय में रहकर सिद्ध, बुद्ध, कर्ममुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए ।
महाहिमवन्त कूट के ऊपरी चरमान्त भाग से महाहिमवन्त वर्षधर पर्वत का समधरणी तल सात सौ योजन अन्तर वाला कहा गया है।
इसी प्रकार रुक्मी कूट का भी अन्तर जानना चाहिए। सूत्र-१९०
महाशुक्र और सहस्रार इन दो कल्पों में विमान आठ सौ योजन ऊंचे हैं।
इस रत्नप्रभा पृथ्वी के प्रथम कांड के मध्यवर्ती आठ सौ योजनों में वानव्यवहार भौमेयक देवों के विहार कहे गए हैं।
श्रमण भगवान महावीर के कल्याणमय गति और स्थिति वाले तथा भविष्य में मुक्ति प्राप्त करने वाले अनुत्तरीपपातिक मुनियों की उत्कृष्ट सम्पदा आठ सौ थी।
इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसम रमणीय भूमिभाग से आठ सौ योजन की ऊंचाई पर सूर्य परिभ्रमण करता
अरिष्टनेमि अर्हत् के अपराजित वादियों की उत्कृष्ट वादिसम्पदा आठ सौ थी, जो देव, मनुष्य और असुरों में से किसी से भी वाद में पराजित होने वाले नहीं थे। सूत्र - १९१
आनत, प्राणत, आरण और अच्युत इन चार कल्पों में विमान नौ-नौ सो योजन ऊंचे हैं।
निषध कूट के उपरिम शिखरतल से निषध वर्षधर पर्वत का सम धरणीतल नौ सौ योजन अन्तर वाला है। इसी प्रकार नीलवन्त कूट का भी अन्तर जानना चाहिए।
विमलवाहन कुलकर नौ सौ धनुष ऊंचे थे ।
इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहसम रमणीय भूमिभाग से नौ सौ योजन की सबसे ऊपरी ऊंचाई पर तारा-मंडल संचार करता है।
निषध वर्षधर पर्वत के उपरिम शिखरतल से इस रत्नप्रभा पृथ्वी के प्रथम कांड के बहुमध्य देश भाग का अन्तर नौ सौ योजन है।
इसी प्रकार नीलवन्त पर्वत का भी अन्तर नौ सौ योजन का समझना चाहिए।
मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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