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आगम सूत्र ४, अंगसूत्र- ४, 'समवाय '
समवाय- १००
सूत्र - १७९
दशदशमिका भिक्षुप्रतिमा एक सौ रात-दिनों में और साढ़े पाँचसौ भिक्षादत्तियों से यथासूत्र, यथामार्ग, यथातत्त्व से स्पृष्ट, पालित, शोभित, तीरित, कीर्तित और आराधित होती है ।
शतभिषक् नक्षत्र के एक सौ तारे होते हैं ।
समवाय/ सूत्रांक
सुविधि पुष्पदन्त अर्हत् सौ धनुष ऊंचे थे । पुरुषादानीय पार्श्व अर्हत् एक सौ वर्ष की समग्र आयु भोगकर सिद्ध, बुद्ध, कर्ममुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त हो सर्व दुःखों से रहित हुए । इसी प्रकार स्थविर आर्य सुधर्मा भी सौ वर्ष की सर्व आयु भोगकर सिद्ध, बुद्ध, कर्ममुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त हो सर्व दुःखों से रहित हुए ।
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सभी दीर्घ वैताढ्य पर्वत एक-एक सौ गव्यूति ऊंचे हैं। सभी क्षुल्लक हिमवन्त और शिखरी वर्षधर पर्वत एक-एक सौ योजन ऊंचे हैं । तथा ये सभी वर्षधर पर्वत सौ-सौ गव्यूति उद्वेध वाले हैं। सभी कांचनक पर्वत एकएक सौ योजन ऊंचे कहे गए हैं तथा वे सौ-सौ गव्यूति उद्वेध वाले और मूल में एक-एक सौ योजन विष्कम्भ वाले हैं।
समवाय- १०० का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् समवाय १-से-१०० का हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (समवाय)" आगमसूत्र - हिन्द-अनुवाद”
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