Book Title: Agam 04 Samvayang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 66
________________ आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय' समवाय/ सूत्रांक प्रकीर्णक समवाय सूत्र-१८० चन्द्रप्रभ अर्हत् डेढ़ सौ धनुष ऊंचे थे। आरण कल्प में डेढ़ सौ विमानावास कहे गए हैं। अच्युत कल्प भी डेढ़ सौ विमानावास वाला कहा गया है। सूत्र - १८१ सुपार्श्व अर्हत् दो सौ धनुष ऊंचे थे। सभी महाहिमवन्त और रुक्मी वर्षधर पर्वत दो-दो सौ योजन ऊंचे हैं और वे सभी दो-दो गव्यति उद्वेध वाले हैं इस जम्बूद्वीप में दो सौ कांचनक पर्वत कहे गए हैं। सूत्र - १८२ पद्मप्रभ अर्हत् अढ़ाई सौ धनुष ऊंचे थे। असुरकुमार देवों के प्रासादावतंसक अढ़ाई सौ योजन ऊंचे कहे गए हैं। सूत्र -१८३ सुमति अर्हत् तीन सौ धनुष ऊंचे थे । अरिष्टनेमि अर्हत् तीनसौ वर्ष कुमारवास में रहकर मुण्डित हो अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए। वैमानिक देवों के विमान-प्राकार तीन-तीन सौ योजन ऊंचे हैं। श्रमण भगवान महावीर के संघ में तीन सौ चतुर्दशपूर्वी मुनि थे। पाँच सौ धनुष की अवगाहना वाले चरमशरीरी सिद्धि को प्राप्त पुरुषों (सिद्धों) के जीवप्रदेशों की अवगाहना कुछ अधिक तीन सौ धनुष की होती है। सूत्र-१८४ पुरुषादानीय पार्श्व अर्हन के साढ़े तीन सौ चतुर्दशपूर्वीयों की सम्पदा थी। अभिनन्दन अर्हन् साढ़े तीन सौ धनुष ऊंचे थे । सूत्र - १८५ संभव अर्हत् चार सौ धनुष ऊंचे थे । सभी निषध और नीलवन्त वर्षधर पर्वत चार-चार सौ योजन ऊंचे तथा वे चार-चार सौ गव्यूति उद्वेध (गहराई) वाले हैं। सभी वक्षार पर्वत निषध और नीलवन्त वर्षधर पर्वतों के समीप चार-चार सौ योजन ऊंचे और चार-चार सौ गव्यूति उद्वेध वाले कहे गए हैं। आनत और प्राणत इन दो कल्पों में दोनों के मिलाकर चार सौ विमान कहे गए हैं। श्रमण भगवान महावीर के चार सौ अपराजित वादियों की उत्कृष्ट वादिसम्पदा थी । वे वादी देव, मनुष्य और असुरों में से किसी से भी वाद में पराजित होने वाले नहीं थे । सूत्र - १८६ अजित अर्हन् साढ़े चार सौ धनुष ऊंचे थे । चातुरन्त चक्रवर्ती सगर राजा साढ़े चार सौ धनुष ऊंचे थे। सूत्र - १८७ सभी वक्षार पर्वत सीता-सीतोदा महानदियों के और मन्दर पर्वत के समीप पाँच-पाँच सौ योजन ऊंचे और पाँच-पाँच सौ गव्यूति उद्वेध वाले कहे गए हैं। सभी वर्षधर कूट पाँच-पाँच सौ योजन ऊंचे और मूल में पाँच-पाँच सौ योजन विष्कम्भ वाले कहे गए हैं। कौशलिक ऋषभ अर्हत् पाँच सौ धनुष ऊंचे थे। चातुरन्त चक्रवर्ती राजा भरत पाँच सौ धनुष ऊंचे थे। सौमनस, गन्धमादन, विद्युत्प्रभ और मालवन्त ये चारों वक्षार पर्वत मन्दर पर्वत के समीप पाँच-पाँच सौ योजन ऊंचे और पाँच-पाँच सौ गव्यूति उद्वेध वाले हैं। मुनि दीपरत्नसागर कृत् (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 66

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