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आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय'
समवाय/ सूत्रांक वर्षधर पर्वतों में निषध पर्वत तीसरा और नीलवन्त पर्वत चौथा है । दोनों का अन्तर समान है। सूत्र - १९२
सभी ग्रैवेयक विमान १००० योजन ऊंचे कहे गए हैं।
सभी यमक पर्वत दश-दश सौ योजन ऊंचे कहे गए हैं । तथा वे दश-दश सौ गव्यूति उद्वेध वाले कहे गए हैं। वे मूल में दश-दश सौ योजन आयाम-विष्कम्भ वाले हैं । इसी प्रकार चित्र-विचित्र कूट भी कहना चाहिए ।
सभी वृत्त वैताढ्य पर्वत दश-दश सौ योजन ऊंचे हैं । उनका उद्वेध दश-दश सौ गव्यूति है । वे मूल में दशदश सौ योजन विष्कम्भ वाले हैं। उनका आकार ऊपर-नीचे सर्वत्र पल्यक (ढोल) के समान गोल है।।
वक्षार कूट को छोड़कर सभी हरि और हरिस्सह कूट दश-दश सौ योजन ऊंचे हैं और मूल में दश सौ योजन विष्कम्भ वाले हैं । इसी प्रकार नन्दन-कूट को छोड़कर सभी बलकूट भी दश सौ योजन विस्तार वाले जानना चाहिए।
अरिष्टनेमि अर्हत् दश सौ वर्ष (१०००) की समग्र आयु भोगकर सिद्ध, बुद्ध, कर्ममुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए।
पार्श्व अर्हत् के दश सौ अन्तेवासी कालगत होकर सिद्ध, बुद्ध, कर्ममुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए।
___ पद्मद्रह और पुण्डरीकद्रह दश-दश सौ (१०००) योजन लम्बे कहे गए हैं। सूत्र-१९३
अनुत्तरोपपातिक देवों के विमान ग्यारह सौ योजन ऊंचे कहे गए हैं।
पार्श्व अर्हत के संघ में ११०० वैक्रिय लब्धि से सम्पन्न साधु थे। सूत्र - १९४
महापद्म और महापुण्डरीक द्रह दो-दो हजार योजन लम्बे हैं । सूत्र-१९५
इस रत्नप्रभा पृथ्वी के वज्रकांड के ऊपरी चरमान्त भाग से लोहिताक्ष कांड का नीचला चरमान्त भाग तीन हजार योजन के अन्तर वाला है। सूत्र - १९६
तिगिछ और केशरी द्रह चार-चार हजार योजन लम्बे हैं। सूत्र-१९७
धरणीतल पर मन्दर पर्वत के ठीक बीचोंबीच रुचकनाभि से चारों ही दिशाओं में मन्दर पर्वत पाँच-पाँच हजार योजन के अन्तर वाला है। सूत्र - १९८
सहस्रार कल्प में छह हजार विमानावास कहे गए हैं। सूत्र - १९९
रत्नप्रभा पृथ्वी के रत्नकांड के ऊपरी चरमान्त भाग से पुलककांड का नीचला चरमान्त भाग सात हजार जन के अन्तर वाला है। सूत्र - २००
हरिवर्ष और रम्यकवर्ष कुछ अधिक आठ हजार योजन विस्तार वाले हैं। सूत्र - २०१
पूर्व और पश्चिम में समुद्र को स्पर्श करने वाली दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र की जीवा नौ हजार योजन लम्बी है।
(अजित अर्हत के संघ में कुछ अधिक नौ हजार अवधिज्ञानी थे।) सूत्र-२०२
मन्दर पर्वत धरणीतल पर दश हजार योजन विस्तार वाला कहा गया है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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