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आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय'
समवाय/ सूत्रांक
समवाय-८४ सूत्र-१६३
चौरासी लाख नारकावास कहे गए हैं।
कौशलिक ऋषभ अर्हत् चौरासी लाख पूर्व वर्ष की सम्पूर्ण आयु भोगकर सिद्ध, बुद्ध, कर्मों से मुक्त और परिनिर्वाण को प्राप्त होकर सर्व दुःखों से रहित हुए । इसी प्रकार भरत, बाहुबली, ब्राह्मी और सुन्दरी भी चौरासीचौरासी लाख पूर्व वर्ष की पूरी आयु पालकर सिद्ध, बुद्ध, कर्ममुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित
श्रेयांस अर्हत् चौरासी लाख वर्ष की सर्व आयु भोगकर सिद्ध, बुद्ध, कर्ममुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए।
त्रिपृष्ठ वासुदेव चौरासी लाख वर्ष की सर्व आयु भोगकर सातवी पृथ्वी के अप्रतिष्ठान नामक नरक में नारक रूप से उत्पन्न हुए।
देवेन्द्र, देवराज शक्र के चौरासी हजार सामानिक देव हैं।
जम्बूद्वीप के बाहर के सभी मन्दराचल चौरासी चौरासी हजार योजन ऊंचे कहे गए हैं । नन्दीश्वर द्वीप के सभी अंजनक पर्वत चौरासी चौरासी हजार योजन ऊंचे हैं।
हरिवर्ष और रम्यकवर्ष की जीवाओं का परिक्षेप (परिधि) चौरासी हजार सोलह योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से चार भाग प्रमाण हैं।
पंकबहुल भाग के ऊपरी चरमान्त भाग से उसी का अधस्तन-नीचे का चरमान्त भाग चौरासी लाख योजन के अन्तर वाला कहा गया है।
व्याख्याप्रज्ञप्ति नामक (भगवती) सूत्र के पद-गणना की अपेक्षा चौरासी हजार पद कहे गए हैं। नागकुमार देवों के चौरासी लाख आवास (भवन) हैं । चौरासी हजार प्रकीर्णक कहे गए हैं । चौरासी लाख जीव-योनियाँ कही गई हैं।
पूर्व की संख्या से लेकर शीर्षप्रहेलिका नाम की अन्तिम महासंख्या तक स्वस्थान और स्थानान्तर चौरासी (लाख) के गुणाकार वाले कहे गए हैं।
ऋषभ अर्हत् के संघ में चौरासी हजार श्रमण (साधु) थे ।
सभी वैमानिक देवों के विमानावास चौरासी लाख, सतानवे हजार और तेईस विमान होते हैं, ऐसा भगवान ने कहा है।
समवाय-८४ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय-८५ सूत्र-१६४
चूलिका सहित श्री आचाराङ्ग सूत्र के पचासी उद्देशन काल कहे गए हैं।
धातकीखंड के (दोनों) मन्दराचल भूमिगत अवगाढ़ तल से लेकर सर्वाग्र भाग (अंतिम ऊंचाई) तक पचासी हजार योजन कहे गए हैं । (इसी प्रकार पुष्करवर द्वीपार्ध के दोनों मन्दराचल भी जानना चाहिए ।) रुचक नामक तेरहवे द्वीप का अन्तर्वर्ती गोलाकार मंडलिक पर्वत भूमिगत अवगाढ़ तल से लेकर सर्वाग्र भाग तक पचासी हजार योजन कहा गया है। अर्थात् इन सब पर्वतों की ऊंचाई पचासी हजार योजन की है।
नन्दनवन के अधस्तन चरमान्त भाग से लेकर सौगन्धिक काण्ड का अधस्तन चरमान्त भाग पचासी सौ योजन अन्तर वाला कहा गया है।
समवाय-८५ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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