Book Title: Agam 04 Samvayang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 59
________________ आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय' समवाय/ सूत्रांक समवाय-८१ सूत्र-१६० नवनवमिका नामक भिक्षुप्रतिमा इक्यासी रात-दिनों में चार सौ पाँच भिक्षादत्तियों द्वारा यथासूत्र, यथामार्ग, यथातत्त्व स्पृष्ट, पालित, शोभित, तीरित, कीर्तित और आराधित होती है। कुन्थु अर्हत् के संघ में इक्यासी सौ मनःपर्यय ज्ञानी थे। व्याख्या-प्रज्ञप्ति मे इक्यासी हजार महायुग्मशत कहे गए हैं। समवाय-८१ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण समवाय-८२ सूत्र-१६१ इस जम्बूद्वीप में सूर्य एक सौ ब्यासीवे मंडल को दो बार संक्रमण कर संचार करता है । जैसे-एक बार नीकलते समय और दूसरी बार प्रवेश करते समय । श्रमण भगवान महावीर ब्यासी रात-दिन बीतने के पश्चात् देवानन्दा ब्राह्मणी के गर्भ से त्रिशला क्षत्रियाणी के गर्भ में संहृत किये गए। महाहिमवन्त वर्षधर पर्वत के ऊपरी चरमान्त भाग से सौगन्धिक कांड का अधस्तन चरमान्त भाग ब्यासी सौ योजन के अन्तर वाला कहा गया है। इसी प्रकार रुक्मी का भी अन्तर जानना चाहिए। समवाय-८२ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण समवाय-८३ सूत्र-१६२ श्रमण भगवान महावीर ब्यासी रात-दिनों के बीत जाने पर तियासीवे रात-दिन के वर्तमान होने पर देवानन्दा के गर्भ से त्रिशला के गर्भ में संहृत हुए। शीतल अर्हत् के संघ में तियासी गण और तियासी गणधर थे । स्थविर मंडितपुत्र तियासी वर्ष की सर्व आयु का पालन कर सिद्ध, बुद्ध, कर्मों से मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त हो सर्व दुःखों से रहित हुए। कौशलिक ऋषभ अर्हत् तियासी लाख पूर्व वर्ष अगारवास में रहकर मुंडित हो अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए। चातुरन्त चक्रवर्ती भरत राजा तियासी लाख पूर्व वर्ष अगारवास में रहकर सर्वज्ञ, सर्वभावदर्शी केवली जिन हुए। समवाय-८३ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 59

Loading...

Page Navigation
1 ... 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96