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आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय'
समवाय/ सूत्रांक
समवाय-७४ सूत्र - १५२
स्थविर अग्निभूति गणधर चौहत्तर वर्ष की सर्व आयु भोगकर सिद्ध, बुद्ध, कर्मों से मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए ।
निषध वर्षधर पर्वत के तिगिंछ द्रह से शीतोदा महानदी कुछ अधिक चौहत्तर सौ योजन उत्तराभिमुखी बह कर महान् घटमुख से प्रवेश कर वज्रमयी, चार योजन लम्बी और पचास योजन चौड़ी जिबिका से नीकलकर मुक्तावलि हार के आकार वाले प्रवाह से भारी शब्द के साथ वज्रतल वाले कुंड में गिरती है । इसी प्रकार सीता नदी भी नीलवन्त वर्षधर पर्वत के केशरी द्रह से कुछ अधिक चौहत्तर सौ योजन दक्षिणाभिमुखी बहकर महान घटमुख से प्रवेश कर वज्रमयी चार योजन लम्बी पचास योजन चौड़ी जिह्विका से नीकलकर मुक्तावली हार के आकार वाले प्रवाह से भारी शब्द के साथ वज्रतल वाले कुंड में गिरती है। चौथी को छोड़कर शेष छह पृथ्वीयों में चौहत्तर लाख नारकावास कहे गए हैं।
समवाय-७४ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय-७५ सूत्र-१५३
सुविधि पुष्पदन्त अर्हन् के संघ में पचहत्तर सौ केवलि जिन थे। । शीतल अर्हन् पचहत्तर हजार पूर्व वर्ष अगारवास में रहकर मुंडित हो अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए शान्ति अर्हन् पचहत्तर हजार वर्ष अगारवास में रहकर मुंडित हो अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए।
समवाय-७५ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय-७६ सूत्र - १५४
विद्युत्कुमार देवों के छिहत्तर लाख आवास (भवन) कहे गए हैं। सूत्र - १५५
इसी प्रकार द्वीपकुमार, दिशाकुमार, उदधिकुमार, स्तनितकुमार और अग्निकुमार इन दक्षिण-उत्तर दोनों युगल वाले छहों देवों के भी छिहत्तर लाख आवास (भवन) कहे गए हैं।
समवाय-७६ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय.७७ सूत्र-१५६
चातुरन्त चक्रवर्ती भरत राजा सतहत्तर लाख पूर्व कोटि वर्ष कुमार अवस्था में रहकर महाराजपद को प्राप्त हुए-राजा हुए।
अंगवंश की परम्परा में उत्पन्न हुए सतहत्तर राजा मुण्डित हो अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए। गर्दतोय और तुषित लोकान्तिक देवों का परिवार सतहत्तर हजार देवों वाला है। प्रत्येक मुहर्त में लवों की गणना से सतहत्तर लव कहे गए हैं।
समवाय-७७ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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