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आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय'
समवाय/ सूत्रांक समवाय-४८ सूत्र-१२६
प्रत्येक चातुरन्त चक्रवर्ती राजा के अड़तालीस हजार पट्टण कहे गए हैं। धर्म अर्हत् के अड़तालीस गण और अड़तालीस गणधर थे । सूर्यमण्डल एक योजन के इकसठ भागों में से अड़तालीस भाग प्रमाण विस्तार वाला कहा गया है।
समवाय-४८ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय-४९ सूत्र-१२७
सप्त-सप्तमिका भिक्षुप्रतिमा उनचास रात्रि-दिवसों से और एक सौ छियानवे भिक्षाओं से यथासूत्र यथामार्ग से (यथाकल्प से, यथातत्व से, सम्यक् प्रकार काय से स्पर्श कर, पालकर, शोधन कर, पार कर, कीर्तन कर, आज्ञा से अनुपालन करे) आराधित होती है।
देवकुरु और उत्तरकुरु में मनुष्य उनचास रात-दिनों में पूर्ण यौवन से सम्पन्न होते हैं । त्रीन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट स्थिति उनचास रात-दिन की कही गई है।
समवाय-४९ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय-५० सूत्र - १२८
मुनिसुव्रत अर्हत् के संघ में पचास हजार आर्यिकाएं थीं । अनन्तनाथ अर्हत् पचास धनुष ऊंचे थे । पुरुषोत्तम वासुदेव पचास धनुष ऊंचे थे।
सभी दीर्घ वैताढ्य पर्वत मूल में पचास योजन विस्तार वाले कहे गए हैं।
लान्तक कल्प में पचास हजार विमानावास कहे गए हैं । सभी तिमिस्र गुफाएं और खण्डप्रपात गुफाएं पचास-पचास योजन लम्बी कही गई हैं । सभी कांचन पर्वत शिखरतल पर पचास-पचास योजन विस्तार वाले कहे गए हैं।
समवाय-५० का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय-५१ सूत्र - १२९
नवों ब्रह्मचर्यों के इक्यावन उद्देशन काल कहे गए हैं।
असुरेन्द्र असुरराज चमर की सुधर्मा सभा इक्यावन सौ खम्भों से रचित है । इसी प्रकार बलि की सभा भी जानना चाहिए।
सुप्रभ बलदेव इक्यावन हजार वर्ष की परमायु का पालन कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए। दर्शनावरण और नाम कर्म इन दोनों कर्मों की इक्यावन उत्तर कर्मप्रकृतियाँ हैं ।
समवाय-५१ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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