Book Title: Agam 04 Samvayang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 47
________________ आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय' समवाय/ सूत्रांक समवाय-४२ सूत्र- ११८ श्रमण भगवान महावीर कुछ अधिक बयालीस वर्ष श्रमण पर्याय पालकर सिद्ध, बुद्ध यावत् (कर्म-मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और) सर्व दुःखों से रहित हुए। जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप की जगती की बाहरी परिधि के पूर्वी चरमान्त भाग से लेकर वेलन्धर नागराज के गोस्तूभ नामक आवास पर्वत के पश्चिमी चरमान्त भाग तक मध्यवर्ती क्षेत्र का बिना किसी बाधा या व्यवधान के अन्तर बयालीस हजार योजन कहा गया है । इसी प्रकार चारों दिशाओं में भी उदकभास शंख और उदकसीम का अन्तर जानना चाहिए। कालोद समुद्र में बयालीस चन्द्र उद्योत करते थे, उद्योत करते हैं और उद्योत करेंगे । इसी प्रकार बयालीस सूर्य प्रकाश करते थे, प्रकाश करते हैं और प्रकाश करेंगे। सम्मूर्छिम भुजपरिसॉं की स्थिति बयालीस हजार वर्ष कही गई है। नामकर्म बयालीस प्रकार का कहा गया है । जैसे-गतिनाम, जातिनाम, शरीरनाम, शरीराङ्गोपाङ्गनाम, शरीर बन्धननाम, शरीरसंघातननाम, संहनननाम, संस्थाननाम, वर्णनाम, गन्धनाम, रनाम, स्पर्शनाम, अगुरुलघुनाम, उप-घातनाम, पराघातनाम, आनुपूर्वीनाम, उच्छवासनाम, आतपनाम, उद्योतनाम, विहायोगतिनाम, त्रसनाम, स्थावरनाम सूक्ष्मनाम, बादरनाम, पर्याप्तनाम, अपर्याप्तनाम, साधारणशरीरनाम, प्रत्येकशरीरनाम, स्थिरनाम, अस्थिरनाम, शुभ नाम, अशुभनाम, सुभगनाम, दुर्भगनाम, सुस्वरनाम, दुःस्वरनाम, आदेयनाम, अनादेयनाम, यशस्कीर्तिनाम, अयश-स्कीर्तिनाम, निर्माणनाम और तीर्थंकरनाम । लवण समुद्र की भीतरी वेला को बयालीस हजार नाग धारण करते हैं । महालिका विमानप्रविभक्ति के दूसरे वर्ग में बयालीस उद्देशन काल कहे गए हैं। प्रत्येक अवसर्पिणी काल का पाँचवा छया आरा (दोनों मिलकर) बयालीस हजार वर्ष का है । प्रत्येक उत्सर्पिणी काल का पहला-दूसरा आरा बयालीस हजार वर्ष का है। समवाय-४२ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण समवाय-४३ सूत्र-११९ कर्मविपाक सूत्र (कर्मों का शुभाशुभ फल बताने वाले अध्ययन) के तैंतालीस अध्ययन कहे गए हैं। पहली, चौथी और पाँचवी पृथ्वी में तैंतालीस लाख नारकावास कहे गए हैं। जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप के पूर्वी जगती के चरमान्त से गोस्तूभ आवास पर्वत का पश्चिमी चरमान्त का बिना किसी बाधा या व्यवधान के सैंतालीस हजार योजन अन्तर है। इसी प्रकार चारों ही दिशा विशेषता यह है कि दक्षिण में दकभास, पश्चिम दिशा में शंख आवास पर्वत है और उत्तर दिशा में दकसीम आवास पर्वत है। महालिका विमान प्रविभक्ति के तीसरे वर्ग में तैंतालीस उद्देशन काल कहे गए हैं। समवाय-४३ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 47

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