Book Title: Agam 04 Samvayang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 53
________________ आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय' समवाय/ सूत्रांक समवाय-६२ सूत्र-१४० पंचसांवत्सरिक युग में बासठ पूर्णिमाएं और बासठ अमावस्याएं कही गई हैं। वासुपूज्य अर्हन् के बासठ गण और बासठ गणधर कहे गए हैं। शुक्लपक्ष में चन्द्रमा दिवस-दिवस (प्रतिदिन) बासठवे भाग प्रमाण एक-एक कला से बढ़ता और कृष्ण पक्ष में प्रतिदिन इतना ही घटता है। सौधर्म और ईशान इन दो कल्पों में पहले प्रस्तट में पहली आवलिका (श्रेणी) में एक एक दिशा में बासठबासठ विमानावास कहे गए हैं । सभी वैमानिक विमान-प्रस्तट प्रस्तटों की गणना से बासठ कहे गए हैं। समवाय-६२ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण समवाय-६३ सूत्र - १४१ कौशलिक ऋषभ अर्हन् तिरेसठ लाख पूर्व वर्ष तक महाराज के मध्य में रहकर अर्थात् राजा पद पर आसीन रहकर फिर मुण्डित हो अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हए। हरिवर्ष और रम्यक वर्ष में मनुष्य तिरेसठ रात-दिनों में पूर्ण यौवन को प्राप्त हो जाते हैं, अर्थात् उन्हें मातापिता द्वारा पालन की अपेक्षा नहीं रहती। निषधपर्वत पर तिरेसठ सूर्योदय कहे हैं । इसी प्रकार नीलवन्त पर्वत पर भी तिरेसठ सूर्योदय कहे गए हैं समवाय-६३ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण समवाय-६४ सूत्र - १४२ अष्टाष्टमिका भिक्षुप्रतिमा चौसठ रात-दिनों में, दो सौ अठासी भिक्षाओं से सूत्रानुसार, यथातथ्य, सम्यक् प्रकार काय से स्पर्श कर, पालकर, शोधन कर, पार कर, कीर्तन कर, आज्ञा अनुसार अनुपालन कर आराधित होती है असुरकुमार देवों के चौंसठ लाख आवास (भवन) कहे गए हैं । चमरराज के चौंसठ हजार सामानिक देव कहे गए हैं। सभी दधिमुख पर्वत पल्य (ढोल) के आकार से अवस्थित है, नीचे ऊपर सर्वत्र समान विस्तार वाले हैं और चौंसठ हजार योजन ऊंचे हैं। सौधर्म, ईशान और ब्रह्मकल्प इन तीनों कल्पों में चौंसठ लाख विमानावास हैं। सभी चातुरन्त चक्रवर्तीओं के चौंसठ लड़ी वाला बहुमूल्य मुक्ता-मणियों का हार है। समवाय-६४ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण समवाय-६५ सूत्र-१४३ जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप में पैंसठ सूर्यमण्डल कहे गए हैं। स्थविर मौर्यपुत्र पैंसठ वर्ष अगारवास में रहकर मुण्डित हो अगार त्याग कर अनगारिता में प्रव्रजित हुए। सौधर्मावतंसक विमान की एक-एक दिशा में पैंसठ-पैंसठ भवन कहे गए हैं। समवाय-६५ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 53

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