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आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय'
समवाय/ सूत्रांक समवाय-४४ सूत्र-१२०
चवालीस ऋषिभाषित अध्ययन कहे गए हैं, जिन्हें देवलोक से च्युत हए ऋषियों ने कहा है।
विमल अर्हत् के बाद चवालीस पुरुषयुग (पीढ़ी) अनुक्रम से एक के पीछे एक सिद्ध, बुद्ध, कर्मों से मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए।
नागेन्द्र, नागराज धरण के चवालीस लाख भवनावास कहे गए हैं। महालिका विमान प्रविभक्ति के चतुर्थ वर्ग में चवालीस उद्देशन काल कहे गए हैं। समवाय-४४ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय-४५ सूत्र-१२१
समय क्षेत्र (अढ़ाई द्वीप) पैंतालीस लाख योजन लम्बा-चौड़ा कहा गया है । इसी प्रकार ऋतु (उडु) (सौधर्म -ईशान देवलोक में प्रथम पाथड़े में चार विमानवलिकाओं के मध्यभाग में रहा हुआ गोल विमान) और ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी (सिद्धि स्थान) भी पैंतालीस-पैंतालीस लाख योजन विस्तृत जानना चाहिए।
धर्म अर्हत् पैंतालीस धनुष ऊंचे थे।
मन्दर पर्वत की चारों ही दिशाओं में लवणसमुद्र की भीतरी परिधि की अपेक्षा पैंतालीस हजार योजन अन्तर बिना किसी बाधा के कहा गया है।
सभी व्यर्ध क्षेत्रीय नक्षत्रोंने ४५ मुहूर्त तक चन्द्रमा के साथ योग किया है, योग करते हैं और योग करेंगे सूत्र - १२२
तीनों उत्तरा, पुनर्वसु, रोहिणी और विशाखा ये छह नक्षत्र पैंतालीस मुहूर्त तक चन्द्र के साथ संयोगवाले कहे गए हैं। सूत्र - १२३ महालिकाविमान प्रविभक्ति सूत्र के पाँचवे वर्ग में पैंतालीस उद्देशनकाल हैं।
समवाय-४५ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय-४६ सूत्र-१२४
बारहवें दृष्टिवाद अंग के छियालीस मातृकापद कहे गए हैं। ब्राह्मी लिपि के छियालीस मातृ-अक्षर कहे गए हैं। वायुकुमारेन्द्र प्रभंजन के छियालीस लाख भवनावास कहे गए हैं ।
समवाय-४६ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
समवाय-४७ सूत्र - १२५
जब सूर्य सबसे भीतरी मण्डल में आकर संचार करता है, तब इस भरत क्षेत्रगत मनुष्य को सैंतालीस हजार दो सौ तिरेसठ योजन और एक योजन के साठ भागों में इक्कीस भाग की दूरी से सूर्य दृष्टिगोचर होता है। अग्निभूति स्थविर तैंतालीस वर्ष गृहवास में रहकर मुण्डित हो अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए।
समवाय-४७ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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