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आगम सूत्र ४, अंगसूत्र- ४, 'समवाय '
समवाय- २४
समवाय/ सूत्रांक
सूत्र - ५४
चौबीस देवाधिदेव कहे गए हैं । जैसे - ऋषभ, अजित, संभव, अभिनन्दन, सुमति, पद्मप्रभ, सुपार्श्व, चन्द्रप्रभ, सुविधि (पुष्पदन्त), शीतल, श्रेयांस, वासुपूज्य, विमल, अनन्त, धर्म, शान्ति, कुन्थु, अर, मल्ली, मुनिसुव्रत नमि, नेमि, पार्श्वनाथ और वर्धमान ।
क्षुल्लक हिमवन्त और शिखरी वर्षधर पर्वतों की जीवाएं चौबीस हजार नौ सौ बत्तीस योजन और एक योजन के अड़तीस भागों में से एक भाग से कुछ अधिक लम्बी है ।
चौबीस देवस्थान इन्द्र-सहित कहे गए हैं । शेष देवस्थान इन्द्र-रहित, पुरोहित-रहित हैं और वहाँ के देव अहमिन्द्र कहे जाते हैं ।
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उत्तरायण-गत सूर्य चौबीस अंगुली वाली पौरुषी छाया को करक कर्क संक्रान्ति के दिन सर्वाभ्यन्तर मंडल से निवृत्त होता है । गंगा-सिन्धु महानदियाँ प्रवाह ( उद्गम-) स्थान पर कुछ अधिक चौबीस-चौबीस कोश विस्तार वाली कही गई हैं । रक्ता रक्तवती महानदियाँ प्रवाह-स्थान पर कुछ अधिक चौबीस चौबीस कोश विस्तार वाली कही गई हैं ।
रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकियों की स्थिति चौबीस पल्योपम कही गई है । अधस्तन सातवी पृथ्वी में कितनेक नारकियों की स्थिति चौबीस सागरोपम कही गई है । कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति चौबीस पल्योपम कही गई है ।
सौधर्म-ईशान कल्प में कितनेक देवों की स्थिति चौबीस पल्योपम कही गई है । अधस्तन- उपरिम ग्रैवेयक देवों की जघन्य स्थिति चौबीस सागरोपम है। जो देव अधस्तन - मध्यम ग्रैवेयक विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति चौबीस सागरोपम है । वे देव बारह मासों के बाद आन-प्राण या उच्छ्वास-निःश्वास लेते हैं । उन देवों को चौबीस हजार वर्षों के बाद आहार की ईच्छा उत्पन्न होती है ।
कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो चौबीस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे ।
समवाय- २४ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (समवाय)" आगमसूत्र - हिन्द-अनुवाद”
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