________________
आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय'
समवाय/ सूत्रांक समवाय-२३ सूत्र - ५३
सूत्रकृताङ्ग के तेईस अध्ययन हैं । समय, वैतालिक, उपसर्गपरिज्ञा, स्त्रीपरिज्ञा, नरकविभक्ति, महावीरस्तुति, कुशीलपरिभाषित, वीर्य, धर्म, समाधि, मार्ग, समवसरण, याथातथ्य ग्रन्थ, यमतीत, गाथा, पुण्डरीक, क्रियास्थान, आहारपरिज्ञा, अप्रत्याख्यानक्रिया, अनगारश्रुत, आर्दीय, नालन्दीय ।।
जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप में, इसी भारतवर्ष में, इसी अवसर्पिणी में तेईस तीर्थंकर जिनों को सूर्योदय के मुहूर्त में केवल-वर-ज्ञान और केवल-वर-दर्शन उत्पन्न हुए।।
जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप में इसी अवसर्पिणी काल के तेईस तीर्थंकर पूर्वभव में ग्यारह अंगश्रुत के धारी थे । जैसे-अजित, संभव, अभिनन्दन, सुमति यावत् पार्श्वनाथ, महावीर । कौशलिक ऋषभ अर्हत् चतुर्दशपूर्वी थे ।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में इस अवसर्पिणी काल के तेईस तीर्थंकर पूर्वभव में मांडलिक राजा थे । जैसेअजित, संभव, अभिनन्दन यावत् पार्श्वनाथ तथा वर्धमान । कौशलिक ऋषभ अर्हत् पूर्वभव में चक्रवर्ती थे।
इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकियों की स्थिति तेईस पल्योपम कही गई है। अधस्तन सातवी पृथ्वी में कितनेक नारकियों की स्थिति तेईस सागरोपम कही गई है। कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति तेईस पल्योपम कही गई है।
सौधर्म ईशान कल्प में कितनेक देवों की स्थिति तेईस पल्योपम है । अधस्तन-मध्यमग्रैवेयक के देवों की जघन्य स्थिति तेईस सागरोपम है । जो देव अधस्तन ग्रैवेयक विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति तेईस सागरोपम है । वे देव साढ़े ग्यारह मासों के बाद आन-प्राण या उच्छ्वास-निःश्वास लेते हैं । उन देवों के तेईस हजार वर्षों के बाद आहार की ईच्छा उत्पन्न होती है।
__ कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं, जो तेईस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दःखों का अन्त करेंगे।
समवाय-२३ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 29