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आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय'
समवाय/ सूत्रांक समवाय-३१ सूत्र-१००
सिद्धों के आदि गुण अर्थात् सिद्धत्व पर्याय प्राप्त करने के प्रथम समय में होने वाले गुण इकतीस कहे गए हैं । जैसे-क्षीण आभिनिबोधिकज्ञानावरण, क्षीणश्रुतज्ञानावरण, क्षीणअवधिज्ञानावरण, क्षीणमनःपर्यवज्ञानावरण, क्षीणकेवलज्ञानावरण, क्षीणचक्षुदर्शनावरण, क्षीणअचक्षुदर्शनावरण, क्षीण अवधिदर्शनावरण, क्षीण केवलदर्शनावरण, क्षीण निद्रा, क्षीण निद्रानिद्रा, क्षीण प्रचला, क्षीण प्रचलाप्रचला, क्षीणस्त्यानर्द्धि, क्षीण सातावेदनीय, क्षीण असातावेदनीय, क्षीण दर्शनमोहनीय, क्षीण चारित्रमोहनीय, क्षीण नरकायु, क्षीण तिर्यगायु, क्षीण मनुष्यायु, क्षीण देवायु, क्षीण उच्चगोत्र, क्षीण नीचगोत्र, क्षीण शुभनाम, क्षीण अशुभनाम, क्षीण दानान्तराय, क्षीण लाभान्तराय, क्षीण भोगान्तराय, क्षीण उपभोगान्तराय और क्षीण वीर्यान्तराय । सूत्र-१०१
मन्दर पर्वत धरणीतल पर परिक्षेप (परिधि) की अपेक्षा कुछ कम इकत्तीस हजार छह सौ तेईस योजन कहा गया है । जब सूर्य सब से बाहरी मण्डल में जाकर संचार करता है, तब इस भरत-क्षेत्र-गत मनुष्य को इकत्तीस हजार आठ सौ इकत्तीस और एक योजन के साठ भागों में से तीस भाग की दूरी से वह सूर्य दृष्टिगोचर होता है । अभिवर्धित मास में रात्रि-दिवस की गणना से कुछ अधिक इकत्तीस रात-दिन कहे गए हैं । सूर्यमास रात्रि-दिवस की गणना से कुछ विशेष हीन इकत्तीस रात-दिन का कहा गया है।
इस रत्नप्रभा पथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति इकत्तीस पल्योपम है। अधस्तन सातवी पथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति इकत्तीस सागरोपम है। कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति इकत्तीस पल्योपम की
__सौधर्म-ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति इकत्तीस पल्योपम है । विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवों की जघन्य स्थिति इकत्तीस सागरोपम है । जो देव उपरिम-उपरिम ग्रैवेयक विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति इकत्तीस सागरोपम है । वे देव साढ़े पन्द्रह मासों के बाद आन-प्राण या उच्छवास-निःश्वास लेते हैं। उन देवों के इकत्तीस हजार वर्षों के बाद आहार की ईच्छा उत्पन्न होती है।
कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो इकत्तीस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे. परिनिर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे।
समवाय-३१ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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