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आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय'
समवाय/ सूत्रांक तीस नाम हैं । जैसे-रौद्र, शक्त, मित्र, वायु, सुपीत, अभिचन्द्र, माहेन्द्र, प्रलम्ब, ब्रह्म, सत्य, आनन्द, विजय, विश्वसेन, प्राजापत्य, उपशम, ईशान, तष्ट, भावितात्मा, वैश्रवण, वरुण, शतऋषभ, गन्धर्व, अग्नि वैशायन, आतप, आवर्त, तष्टवान, भूमह (महान), ऋषभ, सर्वार्थसिद्ध और राक्षस ।
अठारहवें अर अर्हन् तीस धनुष ऊंचे थे। सहस्रार देवेन्द्र देवराज के तीस हजार सामानिक देव कहे गए हैं। पार्श्व अर्हन् तीस वर्ष तक गृह-वास में रहकर अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए। श्रमण भगवान महावीर तीस वर्ष तक गृहवास में रहकर अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए।
रत्नप्रभा पृथ्वी में तीस लाख नारकावास हैं । इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति तीस पल्योपम है । अधस्तन सातवी पृथ्वी में कितनेक नारकियों की स्थिति तीस सागरोपम है। कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति तीस पल्योपम है।
उपरिम-उपरिम ग्रैवेयक देवों की जघन्य स्थिति तीस सागरोपम कही गई है । जो देव उपरिम मध्यम ग्रैवेयक विमानों में देव रूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति तीस सागरोपम है । वे देव पन्द्रह मासों के बाद आन-प्राण और उच्छवास-निःश्वास लेते हैं । उन देवों के तीस हजार वर्ष के बाद आहार की ईच्छा उत्पन्न होती
कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो तीस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परिनिर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे ।
समवाय-३० का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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