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आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय'
समवाय/ सूत्रांक
समवाय-२२ सूत्र-५२
बाईस परीषह कहे गए हैं । जैसे-दिगिंछा (बुभुक्षा) परीषह, पिपासापरीषह, शीतपरीषह, उष्णपरीषह, दंशमशकपरीषह, अचेलपरीषह, अरतिपरीषह, स्त्रीपरीषह, चर्यापरीषह, निषद्यापरीषह, शय्यापरीषह, आक्रोशपरीषह, वधपरीषह, याचनापरीषह, अलाभपरीषह, रोगपरीषह, तृणस्पर्शपरीषह, जल्लपरीषह, सत्कार-पुरस्कारपरीषह, प्रज्ञापरीषह, अज्ञानपरीषह और अदर्शनपरीषह।
दृष्टिवाद नामक बारहवे अंग में बाईस सूत्र स्वसमयसूत्रपरिपाटी से छिन्न-छेदनयिक हैं । बाईस सत्र आजीविकसूत्रपरिपाटी से अच्छिन्न-छेदनयिक हैं । बाईस सूत्र त्रैराशिकसूत्रपरिपाटी से नयत्रिक-सम्बन्धी हैं । बाईस सूत्र चतुष्कनयिक हैं जो चार नयों की अपेक्षा से हैं।
पुद्गल के परिणाम (धर्म) बाईस प्रकार के कहे गए हैं । जैसे-कृष्णवर्णपरिणाम, नीलवर्णपरिणाम, लोहित वर्णपरिणाम, हारिद्रवर्णपरिणाम, शुक्लवर्णपरिणाम, सुरभिगन्धपरिणाम, दुरभिगन्धपरिणाम, तिक्तरसपरिणाम, कटुरसपरिणाम, कषायरसपरिणाम, आम्लरसपरिणाम, मधुररसपरिणाम, कर्कशस्पर्शपरिणाम, मृदुस्पर्शपरिणाम, गुरुस्पर्शपरिणाम, लघुस्पर्शपरिणाम, शीतस्पर्शपरिणाम, उष्णस्पर्शपरिणाम, स्निग्धस्पर्शपरिणाम, रूक्षस्पर्शपरिणाम अगुरुलघुस्पर्शपरिणाम और गुरुलघुस्पर्शपरिणाम ।
- इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकियों की स्थिति बाईस पल्योपम कही गई है । छठी तमःप्रभा पृथ्वी में नारकियों की उत्कृष्ट स्थिति बाईस सागरोपम कही गई है। अधस्तन सातवीं तमस्तमा पथ्वी में कितनेक नारकियों की जघन्य स्थिति बाईस सागरोपम कही गई है। कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति बाईस पल्योपम कही गई
सौधर्म-ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति बाईस पल्योपम है । अच्युत कल्प में देवों की (उत्कृष्ट) स्थिति बाईस सागरोपम है । अधस्तन-अधस्तन ग्रैवेयक देवों की जघन्य स्थिति बाईस सागरोपम है । वहाँ जो देव महित, विसहित (विश्रुत), विमल, प्रभास, वनमाल और अच्युतावतंसक नाम के विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति बाईस सागरोपम है । वे देव ग्यारह मासों के बाद आनप्राण या उच्छवास-निःश्वास लेते हैं। उन देवों के बाईस हजार वर्षों के बाद आहार की ईच्छा उत्पन्न होती है।
कितनेक भवसिद्धिक जीव बाईस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे।
समवाय-२२ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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