Book Title: Agam 04 Samvayang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 17
________________ आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय' समवाय/ सूत्रांक समवाय-११ सूत्र-१९ हे आयुष्मन् श्रमणो ! उपासकों श्रावकों की ग्यारह प्रतिमाएं कही गई हैं । जैसे-दर्शन श्रावक १, कृतव्रतकर्मा २, सामायिककृत ३, पौषधोपवास-निरत ४, दिवा ब्रह्मचारी, रात्रि-परिमाणकृत ५, दिवा ब्रह्मचारी भी, रात्रिब्रह्मचारी भी, अस्नायी, विकट-भोजी और मौलिकृत ६, सचित्तपरिज्ञात ७, आरम्भपरिज्ञात ८, प्रेष्य-परिज्ञात ९, उद्दिष्टपरिज्ञात १० और श्रमणभूत ११ ।। लोकान्त से एक सौ ग्यारह योजन के अन्तराल पर ज्योतिष्चक्र अवस्थित कहा गया है । जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत से ग्यारह सौ इक्कीस योजन के अन्तराल पर ज्योतिष्चक्र संचार करता है। श्रमण भगवान महावीर के ग्यारह गणधर थे-इन्द्रभूति, अग्निभूति, वायुभूति, व्यक्त, सुधर्म, मंडित, मौर्यपुत्र, अकम्पित, अचलभ्राता, मेतार्य और प्रभास । मूल नक्षत्र ग्यारह तारा वाला कहा गया है । अधस्तन ग्रैवेयक-देवों के विमान एक सौ ग्यारह कहे गए हैं। मन्दर पर्वत धरणी-तल से शिखर तल पर ऊंचाई की अपेक्षा ग्यारहवें भाग से हीन विस्तार वाला इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति ग्यारह पल्योपम कही गई है । पाँचवी धूमप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति ग्यारह सागरोपम कही गई है । कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति ग्यारह पल्योपम कही गई है। सौधर्म-ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति ग्यारह पल्योपम है । लान्तक कल्प में कितनेक देवों की स्थिति ग्यारह सागरोपम है। वहाँ पर जो देव ब्रह्म, सुब्रह्म, ब्रह्मावर्त, ब्रह्मप्रभ, ब्रह्मकान्त, ब्रह्मवर्ण, ब्रह्मलेश्य, ब्रह्मध्वज, ब्रह्मशृंग, ब्रह्मसृष्ट, ब्रह्मकूट और ब्रह्मोत्तरावतंसक नाम के विमानों में देव रूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की स्थिति ग्यारह सागरोपम है । वे देव ग्यारह अर्धमासों के बाद आन-प्राण या उच्छ्वास-निःश्वास लेते हैं । उन देवों को ग्यारह हजार वर्ष के बाद आहार की ईच्छा होती है। कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो ग्यारह भव करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दःखों का अन्त करेंगे। समवाय-११ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 17

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