Book Title: Agam 04 Samvayang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 21
________________ आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय' समवाय/ सूत्रांक समवाय-१५ सूत्र-३२-३४ पन्द्रह परमअधार्मिक देव कहे गए हैं-अम्ब, अम्बरिषी, श्याम, शबल, रुद्र, उपरुद्र, काल, महाकाल |असिपत्र, धनु, कुम्भ, वालुका, वैतरणी, खरस्वर, महाघोष । सूत्र - ३५ नमि अर्हन् पन्द्रह धनुष ऊंचे थे। ध्रुवराहु कृष्णपक्ष की प्रतिपदा के दिन से चन्द्र लेश्या के पन्द्रहवे-पन्द्रहवे दीप्तिरूप भाग को अपने श्याम वर्ण से आवरण करता रहता है । जैसे-प्रतिपदा के दिन प्रथम भाग को, द्वीतिया के दिन द्वीतिय भाग को, तृतीया के दिन तीसरे भाग को, चतुर्थी के दिन चौथे भाग को, पंचमी के दिन पाँचवे भाग को, षष्ठी के दिन छठे भाग को, सप्तमी के दिन सातवे भाग को, अष्टमी के दिन आठवे भाग को, नवमी के दिन नौवे भाग को, दशमी के दिन दशवे भाग को, एकादशी के दिन ग्यारहवे भाग को, द्वादशी के दिन बारहवे भाग को, त्रयोदशी के दिन तेरहवे भाग को, चतुर्दशी के दिन चौदहवे भाग को और पन्द्रस (अमावस) के दिन पन्द्रहवे भाग को आवरण करके रहता है। वही ध्रुवराहु शुक्ल पक्ष में चन्द्र के पन्द्रहवे-पन्द्रहवे भाग को उपदर्शन कराता रहता है । जैसे प्रतिपदा के दिन पन्द्रहवे भाग को प्रकट करता है, द्वीतिया के दिन दूसरे पन्द्रहवे भाग को प्रकट करता है । इस प्रकार पूर्णमासी के दिन पन्द्रहवे भाग को प्रकट कर पूर्ण चन्द्र को प्रकाशित करता है। सूत्र - ३६ छह नक्षत्र पन्द्रह मुहर्त तक चन्द्र के साथ संयोग करके रहने वाले कहे गए हैं। जैसे-शतभिषक, भरणी, आर्द्रा, आश्लेषा, स्वाति और ज्येष्ठा । ये छह नक्षत्र पन्द्रह मुहर्त तक चन्द्र से संयुक्त रहते हैं। सूत्र - ३७ चैत्र और आसौज मास में दिन पन्द्रह-पन्द्रह मुहर्त्त का होता है । इसी प्रकार चैत्र और आसौज मास में रात्रि भी पन्द्रह-पन्द्रह मुहूर्त की होती है। विद्यानुवाद पूर्व के वस्तु नामक पन्द्रह अर्थाधिकार कहे गए हैं । मनुष्यों के पन्द्रह प्रकार के प्रयोग कहे गए हैं । जैसे-सत्यमनःप्रयोग, मृषामनःप्रयोग, सत्यमृषामनःप्रयोग, असत्यमृषामनःप्रयोग, सत्यवचनप्रयोग, मृषावचनप्रयोग, सत्यमृषावचनप्रयोग, असत्यामृषावचनप्रयोग, औदारिकशरीरकायप्रयोग, औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोग, वैक्रियशरीरकायप्रयोग, वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोग, आहारकशरीरकायप्रयोग, आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोग और कार्मणशरीरकायप्रयोग। इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति पन्द्रह पल्योपम कही गई है । पाँचवी धूमप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति पन्द्रह सागरोपम की है। कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति पन्द्रह पल्योपम की है। सौधर्म ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति पन्द्रह पल्योपम है। महाशुक्र कल्प में कितनेक देवों की स्थिति पन्द्रह सागरोपम है । वहाँ जो देव नन्द, सुनन्द, नन्दावर्त, नन्दप्रभ, नन्दकान्त, नन्दवर्ण, नन्दलेश्य, नन्दध्वज, नन्दशृंग, नन्दसृष्ट, नन्दकूट और नन्दोत्तरावतंसक नाम के विशिष्ट विमानों में देव रूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति पन्द्रह सागरोपम है । वे देव साढ़े सात मासों के बाद आन-प्राण-उच्छ्वास-निःश्वास लेते हैं । उन देवों को पन्द्रह हजार वर्षों के बाद आहार की ईच्छा उत्पन्न होती है। कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं, जो पन्द्रह भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परिनिर्वाण प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे। समवाय-१५ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 21

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