Book Title: Agam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्'
श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-८०
कुछ दर्शनों में कहा गया है कि लोकवाद सूनना चाहिए, किन्तु वह विपरीत बुद्धि से उत्पन्न हैं एवं दूसरों द्वारा कथित बात का अनुगमन मात्र है। सूत्र-८१
(कुछ कहते हैं-) लोक नित्य, शाश्वत और अविनाशी है । अतः अनन्त है; पर धीर-पुरुष नित्य लोक को अन्तवान देखता है। सूत्र - ८२
कुछ लोगों ने कहा है लोक अपरिमित जाना जाता है, लेकिन धीर-पुरुष उसे परिमित देखता/जानता है। सूत्र-८३
इस लोक में त्रस अथवा स्थावर जितने भी प्राणी हैं, यह उनकी पर्याय है। जिससे प्राणी कभी त्रस और कभी स्थावर होते हैं। सूत्र-८४
जगत में योग/अवस्था उदार है, किन्तु विपर्यास में प्रलीन हो अवस्थाएं इंद्रिय प्रत्यक्ष हैं । सभी प्राणी दुःख से आक्रांत हैं। इसलिए सभी अहिंस्य हैं। सूत्र-८५
ज्ञानी होने का सार यही है कि वह किसी की हिंसा न करे । समता ही अहिंसा है। इतना ही उसे जानना चाहिए। सूत्र-८६
वह व्युषित/निर्मल रहे, गृद्धिमुक्त बने, आत्मा का संरक्षण करे । चर्या, आसन, शय्या और आहार-पानी के सम्बन्ध में जीवन-पर्यन्त (प्रयत्नशील रहे ।) सूत्र-८७
मुनि (चर्या, आसन-शयन एवं भक्तपान) इन तीन स्थानों में सतत संयत रहे । यह उत्कर्ष/मान, ज्वलन/ क्रोध, नूम/माया, मध्यस्थ/लोभ का परिहार करे । सूत्र-८८
साधु समितियों से संयुक्त, पाँच संवरों से संवृत, आबद्ध पुरुषों में अप्रतिबद्ध होकर अन्तिम समय तक मोक्ष के लिए परिव्रजन करे । -ऐसा मैं कहता हूँ।
अध्ययन-१ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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