Book Title: Agam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 22
________________ आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-२२० समग्र युक्तियों से अपना मत-स्थापन अशक्य लगने पर लोग वाद को छोड़कर प्रगल्भिता में उतर आते हैं । सूत्र - २२१ राग दोष/द्वेष से अभिभूत और मिथ्यात्व से अभिद्रुत/ओतप्रोत वे वैसे ही आक्रोश की शरण स्वीकार कर लेते हैं, जैसे तङ्गण (अनार्य) पर्वत को स्वीकारता है। सूत्र - २२२ आत्मगण समाहित परुष बहगण निष्पन्न चर्चा करे। वह वैसा आचरण करे जिससे कोई विरोधी न हो। सूत्र-२२३ काश्यप महावीर द्वारा प्रवेदित धर्म को प्राप्त कर भिक्षु अग्लान-भाव से ग्लान की सेवा करे । सूत्र - २२४ दृष्टिमान व परिनिवृत्त भिक्षु श्रेयस्कर धर्म को जानकर मोक्ष प्राप्ति होने तक उपसर्गों का नियमन करते हुए परिव्रजन करे | -ऐसा मैं कहता हूँ। अध्ययन-३ - उद्देशक-४ सूत्र-२२५, २२६ तप्त तपोधनी महापुरुष पहले जल से सिद्धि सम्पन्न कहे गए हैं । किन्तु मंद पुरुष वहाँ विवाद करता है। वैदेही नमि भोजन छोड़कर और रामगुप्त भोजन करते हुए तथा बाहक और नारायण ऋषि जल पीकर (सिद्धि सम्पन्न कहे गए हैं ।) सूत्र - २२७ ___ महर्षि आसिल, देविल, द्वीपायन एवं पराशर जल, बीज और हरित का सेवन करते हुए सिद्धि (सम्पन्न कहे गए हैं ।) सूत्र - २२८ पूर्वकालिक ये महापुरुष इस समय भी मान्य एवं कथित हैं । इन्होंने बीज एवं जल का उपभोग करके सिद्धि प्राप्त की थी, ऐसा मैंने परम्परा से सूना है। सूत्र - २२९ वहाँ मन्द-पुरुष वैसे ही विषाद करते हैं, जैसे भार ग्रस्त गधा । भार के सम्भ्रम से वे पीछे चलते रहते हैं। सूत्र - २३० कुछ लोग यह कहते हैं कि साता के द्वारा ही साता विद्यमान होती है । यहाँ आर्य मार्ग ही परम (मोक्षकार) है, समाधिकर है। सूत्र - २३१ इस अप-सिद्धान्त को मानते हुए तुम अल्प के लिए अधिक का लुम्पन मत करो । इसको न छोड़ने पर तुम लोह वणिक की तरह पछताओगे। सूत्र - २३२ वे प्राणों के अतिपात में वर्तनशील, मृषावाद में असंयत अदत्तादान, मैथुन और परिग्रह में सक्रिय है। सूत्र - २३३ जिनशासन-पराङ्मुख, स्त्री-वशवर्ती, अज्ञानी, अनार्य कुछ पार्श्वस्थ इस प्रकार कहते हैंसूत्र-२३४ ___ जैसे गाँठ या फोड़े को मुहूर्त भर के लिए परपीड़ित किया जाता है, उसी प्रकार स्त्रियों के साथ समझने में दोष कहाँ है? मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 22

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