Book Title: Agam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 84
________________ आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक होगा? यही कि दुःख होगा । यदि दुःख के भय से आप हाथ हटा लेते हैं तो यही बात आप सबके लिए अपने समान मानीए, यही सबके लिए प्रमाण मानीए, यही धर्म का सार-सर्वस्व समझीए । यही बात प्रत्येक के लिए तुल्य समझीए, यही युक्ति प्रत्येक के लिए प्रमाण मानीए, और इसी को प्रत्येक के लिए धर्म का सार-सर्वस्व समझीए । धर्म के प्रसंग में जो श्रमण और माहन ऐसा कहते हैं, यावत ऐसी प्ररूपणा करते हैं कि समस्त प्राणियों, भूतों, जीवों और सत्त्वों का हनन करना चाहिए, उन पर आज्ञा चलाना चाहिए, उन्हें दास-दासी आदि के रूप में रखना चाहिए, उन्हें परिताप, क्लेश, उपद्रवित करना चाहिए। ऐसा करने वाले वे भविष्य में अपने शरीर को छेदन -भेदन आदि पीड़ाओं का भागी बनाते हैं । वे भविष्य में जन्म, मरण, विवित योनियों में उत्पत्ति, फिर संसार में पुनः जन्म, गर्भवास, और सांसारिक प्रपंच में पड़कर महाकष्ट के भागी होंगे । वे घोर दण्ड के भागी होंगे । वे बहुत ही मण्डन, तर्जन, ताडन, खोडी बन्धन के, यहाँ तक कि घोले (पानी में डबोए) जाने के भागी होंगे। तथा माता, पिता, भाई, भगिनी, भार्या, पुत्र, पुत्री, पुत्रवधू आदि मरण दुःख के भागी होंगे । वे दरिद्रत साथ निवास, प्रियवियोग, तथा बहुत-से दुःखों और वैमनस्यों के भागी होंगे। वे आदि-अन्तरहित तथा दीर्घकालिक चतुर्गतिक संसार रूप घोर जंगल में बार-बार परिभ्रमण करते रहेंगे। वे सिद्धि को प्राप्त नहीं होंगे, न ही बोध को प्राप्त होंगे, यावत् सर्व दुःखों का अन्त नहीं कर सकेंगे । जैसे सावध अनुष्ठान करनेवाले अन्यतीर्थिक सिद्धि नहीं प्राप्त कर सकते, वैसे ही सावधानुष्ठानकर्ता स्वयूथिक भी सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकते, वे भी पूर्वोक्त अनेक दुःखों के भागी होते हैं । यह कथन सबके लिए तुल्य है, यह प्रत्यक्ष आदि प्रमाणोंसे सिद्ध है, यही सारभूत विचार है। यह प्रत्येक प्राणी के लिए तुल्य है, प्रत्येक के लिए यह प्रमाण सिद्ध है, तथा प्रत्येक के लिए यही सारभूत विचार है। परन्तु धर्म-विचार के प्रसंग में जो सुविहित श्रमण एवं माहन यह कहते हैं कि-समस्त प्राणियों, भूतों, जीवों और सत्त्वों को नहीं मारना चाहिए, उन्हें अपनी आज्ञा में नहीं चलाना एवं उन्हें बलात् दास-दासी के रूप में पकड़ कर गुलाम नहीं बनाना चाहिए, उन्हें डराना-धमकाना या पीड़ित नहीं करना चाहिए, वे महात्मा भविष्य में छेदन-भेदन आदि कष्टों को प्राप्त नहीं करेंगे, वे जन्म, जरा, मरण, अनेक योनियों में जन्म-धारण, संसार में पुनः पुनः जन्म, गर्भवास तथा संसार के अनेकविध प्रपंच के कारण नाना दुःखों के भाजन नहीं होंगे । तथा वे आदिअन्त रहित, दीर्घकालिक मध्यरूप चतुर्गतिक संसाररूपी गोर वन में बारंबार भ्रमण नहीं करेंगे । वे सिद्धि को प्राप्त करेंगे, केवलज्ञान-केवलदर्शन प्राप्त कर बुद्ध और मुक्त होंगे, तथा समस्त दुःखों का सदा के लिए अन्त करेंगे। सूत्र-६७४ इन बारह क्रियास्थानों में वर्तमान जीव अतीत में सिद्ध नहीं हुए, बुद्ध नहीं हुए, मुक्त नहीं हुए यावत् सर्वदुःखों का अन्त न कर सके, वर्तमान में भी वे सिद्ध, यावत् सर्वदुःखान्तकारी नहीं होते और न भविष्य में सिद्ध यावत् सर्वदुःखान्तकारी होंगे । परन्तु इस तेरहवे क्रियास्थान में वर्तमान जीव अतीत, वर्तमान एवं भविष्य में सिद्ध, बुद्ध, मुक्त यावत् सर्वान्तकृत हुए हैं, होते हैं और होंगे । इस प्रकार वह आत्मार्थी, आत्महित तत्पर, आत्मगुप्त, आत्मयोगी, आत्मभाव में पराक्रमी, आत्मरक्षक, आत्मानुकम्पक, आत्मा का जगत से उद्धार करने वाला उत्तम साधक अपनी आत्मा को समस्त पापों से निवृत्त करे। -ऐसा मैं कहता हूँ। अध्ययन-२ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 84

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