Book Title: Agam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 96
________________ आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक अध्ययन-५- आचारश्रुत सूत्र-७०५ आशुप्रज्ञ साधक इस अध्ययन के वाक्य तथा ब्रह्मचर्य को धारण करके इस धर्म में अनाचार का आचरण कदापि न करे। सूत्र - ७०६ 'यह लोक अनादि और अनन्त है, यह जानकर विवेकी पुरुष यह लोक एकान्त नित्य अथवा एकान्त अनित्य, इस प्रकार की दृष्टि, एकान्त (बुद्धि) न रखे । सूत्र - ७०७ इन दोनों (एकान्त नित्य और एकान्त अनित्य) पक्षों से व्यवहार चल नहीं सकता। अतः इन दोनों एकान्त पक्षों के आश्रय को अनाचार जानना चाहिए। सूत्र-७०८ प्रशास्ता भावोच्छेद कर लेंगे । अथवा सभी जीव परस्पर विसदृश हैं, बद्ध रहेंगे, शाश्वत रहेंगे, इत्यादि एकान्त वचन नहीं बोलने चाहिए। सूत्र - ७०९ क्योंकि इन दोनों पक्षों से (शास्त्रीय या लौकिक) व्यवहार नहीं होता । अतः इन दोनों एकान्तपक्षों के ग्रहण को अनाचार समझना चाहिए। सूत्र - ७१० जो क्षुद्र प्राणी है, अथवा जो महाकाय प्राणी है, इन दोनों प्राणियों के साथ समान ही वैर होता है, अथवा नहीं होता; ऐसा नहीं कहना चाहिए। सूत्र - ७११ क्योंकि इन दोनों ('समान वैर होता है या नहीं होता') एकान्तमय वचनों से व्यवहार नहीं होता । अतः इन दोनों एकान्तवचनों को अनाचार जानना चाहिए। सूत्र - ७१२ आधाकर्म दोषयुक्त आहारादि का जो साधु उपभोग करते हैं, वे दोनो परस्पर अपने कर्म से उपलिप्त होते हैं, अथवा उपलिप्त नहीं होते, ऐसा जानना चाहिए। सूत्र - ७१३ इन दोनों एकान्त मान्यताओं से व्यवहार नहीं चलता है, इसलिए इन दोनों एकान्त मन्तव्यों का आश्रय लेना अनाचार समझना चाहिए। सूत्र - ७१४ यह जो औदारिक, आहारक, कार्मण, वैक्रिय एवं तैजस शरीर हैं, ये पाँचों शरीर एकान्ततः भिन्न नहीं हैं, अथवा सर्वथा भिन्न-भिन्न नहीं हैं, तथा सब पदार्थों में सब पदार्थों की शक्ति विद्यमान है, अथवा नहीं ही है; ऐसा एकान्तकथन भी नहीं करना चाहिए। सूत्र - ७१५ क्योंकि इन दोनों प्रकार के एकान्त विचारों से व्यवहार नहीं होता । अतः इन दोनों एकान्तमय विचारों का प्ररूपण करना अनाचार समझना चाहिए। सूत्र-७१६ लोक नहीं है या अलोक नहीं है ऐसी संज्ञा नहीं रखनी चाहिए अपितु लोक है और अलोक है, ऐसी संज्ञा रखनी चाहिए। मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 96

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