Book Title: Agam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्'
श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक अध्ययन-४ - स्त्रीपरिज्ञा
उद्देशक-१ सूत्र - २४७
जो माता, पिता तथा पूर्व संयोग को छोड़कर संकल्प करता है-मैं अकेला ही मैथुन से विरत होकर विवक्त (एकान्त) स्थानों में विचरण करूँगा। सूत्र - २४८ ___मन्द स्त्रियाँ सूक्ष्म एवं स्वच्छन्द पराक्रम कर उस उपाय को भी जानती हैं जिससे कुछ भिक्षु श्लिष्ट होते हैं सूत्र - २४९
वे साधु के पास बैठती हैं, पोष-वस्त्र (संधारण वस्त्र) ढीला करती हैं, बाँधती हैं | अधोकाय का दर्शन कराती है तथा बाहु उठाकर काँख बजाती है। सूत्र - २५०
कभी वे स्त्रियाँ समयोचित शयन आसन के लिए उसे निमंत्रित करती हैं । इससे मुनि को यह समझना चाहिए कि ये विविध प्रकार के पाश हैं। सूत्र-२५१
मुनि उन पर आँख न गड़ाए । न उनके इस साहस का समर्थन करे । साथ में विचरण भी न करे । इससे आत्मा सुरक्षित होती है। सूत्र-२५२
वे भिक्षु को आमन्त्रित/लुब्ध या उपशमित कर स्वयं निमंत्रण देती हैं । पर (मुनि) इन शब्दों को नाना प्रकार के बन्धन समझे। सूत्र-२५३
वे मन को बाँधने वाली करुण, विनीत अथवा मंजुल भाषा बोलती हैं। भिन्न कथा से आज्ञा भी देती हैं। सूत्र - २५४
स्त्रियाँ संवृत और अकेले अनगार को (मोहपाश में) वैसे ही बाँध लेती हैं, जैसे प्रलोभन पाश में निर्भय एगचारी सिंह को बाँधता है। सूत्र - २५५
फिर वे क्रमशः साधु को वैसे ही झुका लेती हैं, जैसे रथकार धुरी को । वह मुनि पाश में बद्ध मृग की तरह स्पंदमान होने पर भी उससे मुक्त नहीं हो पाता। सूत्र - २५६
____ बाद में वह वैसे ही अनुतप्त होता है । जैसे विषमिश्रित खीर खाकर मनुष्य । इस तरह विवेक प्राप्त कर भिक्षु स्त्री के साथ सहवास न करे । सूत्र-२५७
इसलिए स्त्री को विषलिप्त काँटा जानकर वर्जन करना चाहिए । जो ओजस्वी पुरुष कुलों में स्त्रियों को वश करने की बात भी कहता है तो वह निर्ग्रन्थ नहीं है। सूत्र - २५८
जो अनुगृद्ध होकर ऊञ्छवृत्ति करते हैं । वे कुशीलों में अन्यतर हैं । जो सुतपस्वी भिक्षु हैं वे भी स्त्रियों के साथ विहरण न करे। सूत्र - २५९
पुत्री, पुत्र-वधू, धातृ, दासी या बड़ी अथवा कुमारी के साथ भी अनगार संस्तव न करे ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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