Book Title: Agam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 50
________________ आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक अध्ययन-१३- यथातथ्य सूत्र-५५७ नानाविध उत्पन्न पुरुष के लिए मैं यथार्थ का निरूपण करूँगा । मैं सत्-असत्, धर्म-शील, शांति और अशांति को प्रगट करूँगा। सूत्र - ५५८ दिन-रात समुत्थित-तथागतों/तीर्थंकरों से धर्म-प्राप्त कर आख्यात् समाधि का सेवन न करनेवाले असाधु अपने शास्ता को कठोर शब्द कहते हैं। सूत्र -५५९ जो विशोधिका कहते हुए आत्मबुद्धि से विपरीत अर्थ प्ररूपित करता है । जो ज्ञान में शंकित होकर मिथ्या बोलता है। वह अनेक गुणों का अस्थानिक है। सूत्र -५६० जो पूछने पर (आचार्य का) नाम छिपाते हैं वे आदानीय अर्थ का वंचन करते हैं । वे असाधु होते हुए भी स्वयं को साधु मानते हैं । वे मायावी अनन्तघात पाते हैं। सूत्र-५६१ जो क्रोधी है, वह अशिष्टभाषी है, जो अनुपशान्त पापकर्मी उपशान्त की उदीरणा करता है वह दण्डपथ को ग्रहण कर फँस जाता है। सूत्र - ५६२ जो कलहकारी और ज्ञातभाषी है वह कलहरित, समभावी, अवपातकारी, लज्जालु, एकान्तदृष्टि और छद्म से मुक्त नहीं है। सूत्र-५६३ जो पुरुष जात प्रिय और परिमित बोलता है । वह जात्यान्वित और सरल परिणामी आचार्य द्वारा बहुश: अनुशासित होन पर भी समभावी और कलह से दूर रहता है। सूत्र-५६४ जो बिना परीक्षा किये स्वयं को संयमी और ज्ञानी मानकर आत्मोत्कर्ष दिखाता है एवं मैं श्रेष्ठ तपस्वी हूँ ऐसा मानकर दूसरे लोगों को प्रतिबिम्ब की तरह मानता है। सूत्र-५६५ वह एकान्त मोह वश परिभ्रमण करता है । मौनपद/मुनिपदमें गोत्र नहीं होता है । जो सम्मानार्थ उत्कर्ष दिखाता है, वह ज्ञानहीन अबुद्ध है । सूत्र-५६६ जो ब्राह्मण तथा क्षत्रिय जातीय है व उग्रपुत्र लिच्छवी है, पर जो प्रव्रजित एवं परदत्त भोजी होकर भी गोत्र-मद करता है। वह मानबद्ध है। सूत्र - ५६७ जाति और कुल उसके रक्षक नहीं है । केवल सुचीर्ण विद्याचरण ही उसका रक्षक है । जो अभिनिष्क्रमण कर के भी गृहस्थ-कर्म का सेवन करता है वह कर्म विमोचन में असमर्थ होता है । सूत्र-५६८ अकिंचन और रूक्ष जीवी भिक्षु यदि प्रशंसाकामी है, तो वह अहंकारी है । ऐसा अबुद्ध आजीवक पुनः पुनः विपर्यास प्राप्त करता है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (सूत्रकृत) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 50

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