Book Title: Agam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 56
________________ आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-६२१ धीर अन्त का सेवन करते हैं अतः वे अन्तकर हो जाते हैं । वे नर इस मनुष्य जीवन में धर्माराधना करसूत्र - ६२२ मुक्त होते हैं अथवा उत्तरीय देव होते हैं, ऐसा मैंने सूना है । कुछ लोगों से मैंने यह भी सूना है कि अमनुष्यों को वैसा नहीं होता। सूत्र - ६२३ कुछ लोगों ने कहा है कि (मनुष्य) दुःखों का अन्त करते हैं । पुनः कुछ लोग कहते हैं कि यह मनुष्य शरीर दुर्लभ है। सूत्र-६२४ वहाँ से च्युत जीव को सम्बोधि दुर्लभ है । धर्मार्थ के उपदेष्टा पूज्य पुरुष का योग भी दुर्लभ है । सूत्र - ६२५ जो प्रतिपूर्ण अनुपम, शुद्ध धर्म की व्याख्या करते हैं और जो अनुपम धर्म का स्थान है उसके पुनर्जन्म की कथा कहाँ। सूत्र-६२६ मेघावी तथागत पुनः कहाँ और कब उत्पन्न होते हैं। अप्रतिज्ञ तथागत लोक के अनुत्तर नेत्र हैं। सूत्र-६२७ काश्यप ने उस अनुत्तर स्थान का प्रतिपादन किया है जिसके आचरण से कुछ साधक निर्वृत्त/उपशान्त होकर निष्ठा/मोक्ष प्राप्त करते हैं। सूत्र - ६२८ पंडित/पुरुष कर्म-निघात/निर्जरा के लिए प्रवर्तक वीर्य को प्राप्त कर पूर्वकृत कर्म को समाप्त करे एवं नए कर्म न करे। सूत्र - ६२९ महावीर अनुपूर्व कर्म-रज का (बंध) नहीं करता । वह रज के सम्मुख होकर कर्म क्षय कर जो मत है (उसे प्राप्त कर लेता है)। सूत्र - ६३० जो सर्व साधुओं को मान्य है वह मत निःशल्य है, उसकी साधना कर अनेक जीव तीर्ण हुए अथवा देव हुए हैं। सूत्र-६३१ सुव्रत वीर अतीत में हुए हैं एवं अनागत में भी होंगे। वे स्वयं दुर्निबोध मार्ग के अन्त को प्रगट कर तीर्ण हो जाते हैं । -ऐसा मैं कहता हूँ। अध्ययन-१५ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् (सूत्रकृत) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 56

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