Book Title: Agam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्'
श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक
अध्ययन-१५- आदानीय सूत्र-६०७
दर्शनावरण को समाप्त करने वाला एवं अतीत वर्तमान और भविष्य का ज्ञाता तत्त्वानुरूप जानता है। सूत्र - ६०८
विचिकित्सा को समाप्त करने वाला अनुपम तत्त्व का ज्ञाता है । अनुपम तत्त्व का प्रतिपादक हर स्थान पर नहीं होता। सूत्र-६०९
जो स्वाख्यात है वही सत्य और भाषित है । सत्य-सम्पन्न व्यक्ति के लिए जीवों से सदैव मैत्री ही उचित है। सूत्र - ६१०
जीवोंसे वैर विरोध न करे, यही सुसंयमी का धर्म है । सुसंयमी को जगत परिज्ञात है, यह जीवित भावना है सूत्र - ६११
भावना-योग से विशुद्ध आत्मज्ञ पुरुष की स्थिति जल में नौका के समान है । वह तट प्राप्त नौका की तरह सर्व दुःखों से मुक्त हो जाता है। सूत्र - ६१२
लोक में पाप का ज्ञाता मेघावी पुरुष इससे मुक्त हो जाता है । जो नवीन कर्म का अकर्ता है उसके पाप कर्म टूट जाते हैं। सूत्र - ६१३
जो नवीनकर्म का अकर्ता है, विज्ञाता है वह कर्म बन्धन नहीं करता है। इसे जानकर जो न उत्पन्न होता है और न मरता है, वह महावीर है। सूत्र - ६१४
जिसके पूर्वकृत (कर्म) नहीं है, वह महावीर मरता नहीं है । वह लोक में प्रिय स्त्रियों को वैसे ही पार कर जाता है जैसे वायु अग्नि को पार करता है। सूत्र-६१५
जो स्त्री सेवन न करते हैं वे ही आदि मोक्ष हैं । बन्धन मुक्त वे मनुष्य जीवन की आकांक्षा नहीं करते हैं। सूत्र - ६१६
जो कर्मों के सम्मुखीभूत/साक्षी होकर मार्ग का अनुशासन करते हैं, वे जीवन को पीठ दिखाकर कर्म-क्षय करते हैं। सूत्र - ६१७
____ आशारहित, संयत, दान्त दृढ़ और मैथुन-विरत पूजा की आकांक्षा नहीं करते हैं । वे संयमी-प्राणियों में उनके योग्यतानुसार अनुशासन करते हैं। सूत्र - ६१८
जो स्रोत छिन्न, अनाविल/निर्मल है वह नीवार/प्रलोभन से लिप्त न हो । अनाविल एवं दान्त सदा अनुपम सन्धि/दशा प्राप्त करता है। सूत्र - ६१९
अप्रमत्त और खेदज्ञ पुरुष मन, वचन और काया से किसी का विरोध न करे । सूत्र - ६२०
जो आकांक्षा का अन्त करता है वह मनुष्यों का चक्षु है । उस्तरा अन्त से चलता है । चक्र भी अन्त/धूरी से घूमता है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (सूत्रकृत) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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