Book Title: Agam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 53
________________ आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र - ५९३ ऊर्ध्व, अधो और तिर्यक् दिशाओं में जो भी त्रस और स्थावर प्राणी हैं उनके प्रति सदा संयत होकर परिव्रजन करे, मानसिक प्रद्वेष का विकल्प न करे । सूत्र - ५९४ प्रजा के मध्य द्रव्य एवं चित्त के व्याख्याकार से उचित समय पर समाधि के विषय में पूछे और कैवलिकसमाधि को जानकर उसे हृदय में स्थापित करे । सूत्र -५९५ वैसा मुनि त्रिविध रूप सुस्थित होकर इनमें प्रवृत्त होता है । उससे शान्ति और (कर्म) निरोध होता है । त्रिलोकदर्शी कहते हैं कि वह पुनः प्रमाद में लिप्त नहीं होता। सूत्र-५९६ वह भिक्षु अर्थ को सूनकर एवं समीक्षा कर प्रतिभावान और विशारद हो जाता है । वह आदानार्थी मुनि तप और संयम को प्राप्त कर शुद्ध निर्वाह कर मोक्ष पाता है। सूत्र -५९७ जो अवसरोचित जानकर धर्म की व्याख्या करते हैं वे बोधि को प्राप्त ज्ञाता संसार का अन्त करनेवाले होते हैं | वे श्रृत के पारगामी विद्वान अपने अपने और शिष्य के संदेह-विमोचन के लिए संशोधित जिज्ञासाओं की व्याख्या करते हैं। सूत्र- ५९८ प्राज्ञ न अर्थ छिपाए, न अपरसिद्धान्त का प्रतिपादन करे, न मान करे, न आत्मप्रशंसा करे, न परिहार करे और न ही आशीर्वचन कहे। सूत्र - ५९९ जीव-हिंसा की आशंका से जुगुप्सित मुनि मंत्र पद से गौत्र का निर्वाह न करे । वह मनुज प्रजासे कुछ भी ईच्छा न करे, असाधु धर्मों का संवाद न करे । सूत्र - ६०० निर्मल और अकषायी मुनि पापधर्मीयों का परिहास न करे । अकिंचन रहे । सत्य कठोर होता है, इसे जाने। आत्महीनता एवं आत्मप्रशंसा न करे । सूत्र-६०१ आशुप्रज्ञ भिक्षु अशंकित भाव से विभज्यवाद/स्याद्वाद का प्ररूपण करे । मुनि धर्म-समुत्थित पुरुषों के साथ मिश्र भाषा का प्रयोग करे । सूत्र - ६०२ कोई तथ्य को जानता है कोई नहीं । साधु अकर्कश/विनम्र भाव से उपदेश दे । कहीं भी भाषा सम्बन्धीत हिंसा न करे । छोटी-सी बात को लम्बी न खींचे। सूत्र - ६०३, ६०४ प्रतिपूर्णभाषी, अर्थदर्शी भिक्षु सम्यक् श्रवण कर बोले । आज्ञा-सिद्ध वचन का प्रयोग करे और पाप-विवेक का संधान करे । यथोक्त का शिक्षण प्राप्त करे, यतना करे, अधिक समय तक न बोले, ऐसा भिक्षु ही उस समाधि को कहने की विधि जान सकता है। सूत्र - ६०५ तत्त्वज्ञ भिक्षु प्रच्छन्नभाषी न बने, सूत्रार्थ को अन्य रूप न दे, शास्ता की भक्ति, परम्परागत सिद्धान्त और श्रुत/शास्त्र का सम्यक् प्रतिपादन करे। मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 53

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