Book Title: Agam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक अध्ययन-१४-ग्रन्थ सूत्र-५८० ग्रन्थ को छोड़कर एवं शिक्षित होते हुए प्रव्रजित होकर ब्रह्मचर्य-वास करे, अवपातकारी विनय का प्रशिक्षण करे । जो निष्णात है वह प्रमाद न करे । सूत्र -५८१ जैसे पंख रहित पक्षी-शावक भी अपने आवास/घोंसले से उड़ने का प्रयास करता है, पर उड़ नहीं पाता है एवं उस पंखहीन तरुण का कौए आदि हरण कर लेते हैं। सूत्र - ५८२ वैसे ही अपुष्टधर्मी शैक्ष चारित्र को निस्सार मानकर नीकलना चाहता है । उसे अनेक पाप धर्मी वैसे ही हर लेते हैं जैसे पंखहीन पक्षी-शावक को कौए आदि । सूत्र -५८३ गुरुकुल में न रहने वाला संसार का अन्त नहीं कर सकता, यह जानकर मनुज गुरुकुल-वास एवं समाधि की ईच्छा करे । गुरु वित्त पर अनुशासन करते हैं, अतः आशुप्रज्ञ गुरुकुल को न छोड़े। सूत्र-५८४ स्थान, शयन, आसन और पराक्रम में जो सुसाधुयुक्त हैं, वह समितियों एवं गुप्तियों में आत्मप्रज्ञ होता है। वह अच्छी रीति से (उपदेश) दे । सूत्र-५८५ ____ अनाश्रवी/मुनि कठोर शब्दों को सूनकर संयम में परिव्रजन करे । भिक्षु निद्रा एवं प्रमाद न करे । वह किसी तरह विचिकित्सा से पार हो जाए। सूत्र -५८६ बाल या वृद्ध रात्निक अथवा समव्रती द्वारा अनुशासित होने पर जो सम्यक स्थिरता में प्रवेश नहीं करता है, वह नीयमान होने पर भी संसार को पार नहीं कर पाता। सूत्र - ५८७ शिथिलाचारी, बालक या वृद्ध, छोटी दासी और गृहस्थ द्वारा समय (सिद्धांत) के अनुसार अनुशासित होने परसूत्र -५८८ उन पर क्रोध न करे, व्यथित न हो, न ही किसी तरह की कठोर वाणी बोले 'अब मैं वैसा करूँगा, यह मेरे लिए श्रेय है। ऐसा स्वीकार कर प्रमाद न करे । सूत्र - ५८९ जैसे वन में दिग्मूढ व्यक्ति को सत्यज्ञाता व्यक्ति हीतकर मार्ग दिखलाते हैं और वह दिग्मूढ सोचता है कि अमूढ पुरुष जो मार्ग बता रहे हैं, वही मेरे लिए श्रेय है । सूत्र - ५९० उस मूढ़ को अमूढ़ का विशेष रूप से पूजन करना चाहिए । वीर ने यही उपमा कही है । इसके अर्थ को जानकर साधक सम्यक् उपनय करता है। सूत्र - ५९१, ५९२ जैसे मार्गदर्शक नेता भी रात्रि के अंधकार में न देख पाने के कारण मार्ग नहीं जानता है पर वही सूर्योदय होने पर प्रकाशित मार्ग को जान लेता है ।वैसे ही अपुष्टधर्मी सेध अबुद्ध होने के कारण धर्म नहीं जानता है वही साधु जिनवचन से कोविद बन जाता है जैसे सूर्योदय होने पर नेता चक्षु द्वारा देख लेता है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 52

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114