Book Title: Agam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 51
________________ आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र - ५६९ जो सुसाधुवादी, भाषावान्, प्रतिभावान्, विशारद, प्रखर-प्राज्ञ और श्रुतभावितात्मा है वह दूसरों को अपनी प्रज्ञा से पराभूत कर देता है। सूत्र - ५७० पर ऐसा व्यक्ति समाधि प्राप्त नहीं है । जो भिक्षु अपनी प्रज्ञा का उत्कर्ष दिखलाता है अथवा लाभ के मद से अवलिप्त है वह बालप्रज्ञ दूसरों की निन्दा करता है। सूत्र - ५७१ वह भिक्षु पंडित और महात्मा है जो प्रज्ञा-मद, तपो-मद, गौत्र-मद और चतुर्थ आजीविका-मद मन से नीकाल देता है। सूत्र - ५७२ सुधीरधर्मी धीर इन मदों को छोडकर पुनः सेवन नहीं करते हैं । सभी गोत्रों से दूर वे महर्षि उच्च और अगोत्र गति की ओर व्रजन करते हैं। सूत्र - ५७३ जो भिक्षु मृतार्च तथा दष्टधर्मा है । वह ग्राम व नगर में प्रवेश कर एषणा और अनैषणा को जाने और अन्नपान के प्रति अनासक्त रहे । सूत्र - ५७४ भिक्षु अरति और रति का त्याग करके संघवासी अथवा एकचारी बने । जो बात मौन/मुनित्व से सर्वथा अविरुद्ध हो उसीका निरूपण करे । गति-आगति एकाकी जीव की होती है। सूत्र - ५७५ स्वयं जानकर अथवा सूनकर प्रजा का हीतकर धर्म का भाषण करे । जो सनिदान प्रयोग निन्द्य है, उनका सुधीरधर्मी सेवन न करे। सूत्र - ५७६ किसी के भाव को तर्क से न जानने वाला अश्रद्धालु क्षुद्रता को प्राप्त करता है। अतः साधक अनुमान से दूसरों के अभिप्राय को जानकर आयु का मरणातिचार और व्याघात करे । सूत्र-५७७ धीर कर्म और छन्द का विवेचन कर उसके प्रति आत्म-भाव का सर्वथा विनयन करे । भयावह त्रस-स्थावर रूपों से विद्या-ग्रहण कर पुरुष नष्ट होते हैं। सूत्र - ५७८ निर्मल तथा अकषायी भिक्षु न पूजा व प्रशंसा की कामना करे और न ही किसी का प्रिय-अप्रिय करे । वह सब अनर्थों को छोड़ दे। सूत्र -५७९ यथातथ्य का संप्रेक्षक सभी प्राणियों की हिंसा का परित्याग करे, जीवनमरण का अनाकांक्षी बने और वलय से मुक्त होकर परिव्रजन करे । -ऐसा मैं कहता हूँ। अध्ययन-१३ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 51

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