Book Title: Agam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्'
श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र - २३५
जैसे 'मन्धादक' (भेड़) जल को अव्यवस्थित किये बिना पी लेती है, इसी प्रकार वही विज्ञापन स्त्रियों के साथ हो तो वहाँ दोष कहाँ है ? सूत्र - २३६
जैसे पिंग पक्षिणी जल को अव्यवस्थित किये बिना पी लेती है वही विज्ञापन स्त्रियों के साथ हो, तो वहाँ दोष कहाँ है ? सूत्र - २३७
इस प्रकार कुछ मिथ्यादृष्टि, अनार्य, पार्श्वस्थ वैसे ही कामभोग में अध्युपपन्न रहते हैं, जैसे स्त्री तरुण में आसक्त रहती है। सूत्र - २३८
अनागत को ओझलकर जो मात्र प्रत्युत्पन्न/वर्तमान की गवेषणा करते हैं, वे आयुष्य और यौवन क्षीण होने के बाद में परितप्त होते हैं। सूत्र - २३९
जिन्होंने समय रहते (धर्म) पराक्रम किया है, वे बाद में परितप्त नहीं होते । वे बन्धन-मुक्त धीर-पुरुष जीवन की आकांक्षा नहीं करते। सूत्र-२४०
जैसे वैतरणी नदी दुस्तर समझी गई है, वैसे ही अमतिमान् के लिए इस लोक में नारी दुस्तर है। सूत्र-२४१
जिन्होंने नारी-संयोग की अभ्यर्थना को पीठ दिखा दी है, वे इन सबको निराकृत करके सम्यक्-समाधि में स्थित होते हैं। सूत्र - २४२
___ जहाँ प्राणी स्वकर्मानुसार विषण्णासीन कृत्य करते हैं, उस ओघ को वे कामजयी वैसे ही तैर जाते हैं, जैसे व्यापारी समुद्र को तैर जाते हैं । सूत्र - २४३
इसे जानकर भिक्षु सुव्रत और समित होकर विचरण करे । मृषावाद को और अदत्तादान का विसर्जन करे सूत्र-२४४
___ ऊर्ध्व, अधो अथवा तिर्यक् लोक में जो कोई भी त्रस-स्थावर प्राणी है, उनसे विरति करे, क्योंकि शांति ही निर्वाण कही गई है। सूत्र - २४५
काश्यप महावीर द्वारा प्रवेदित इस धर्म को स्वीकार कर भिक्षु अग्लान भाव से रुग्ण की सेवा करे। सूत्र - २४६
सम्यक् द्रष्टा और परिनिवृत्त भिक्षु पवित्र धर्म को जानकर उपसर्गों का नियमन कर मोक्ष प्राप्ति तक परिव्रजन करे। - ऐसा मैं कहता हूँ।
अध्ययन-३ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 23