Book Title: Agam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्'
श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक
अध्ययन-९ - धर्म सूत्र-४३७
मतिमान् माहन द्वारा कौन-सा धर्म आख्यात है ? तीर्थंकरों के ऋजु और यथार्थ धर्म को मुझसे सूनो। सूत्र - ४३८
माहण, क्षत्रिय, वैश्य, चाण्डाल, वर्णशंकर, एषिक/शिकारी, वैशिक, शूद्र तथा अन्य लोग भी आरम्भाश्रित
सूत्र-४३९
जो परिग्रह में मूर्छित हैं, उनका वैर बढ़ता है, उसके काम आरम्भ-संभृत हैं । वे दुःख विमोचक नहीं हैं। सूत्र-४४०
विषय-अभिलाषी ज्ञातिजन मरणोपरान्त किये जाने वाले अनुष्ठान के पश्चात् धन का हरण कर लेते हैं । कर्मी कर्म से कृत्य करता है। सूत्र - ४४१
जब मैं स्वकर्मों से लिप्तमान हूँ तब माता-पिता, पुत्र-वधू, भाई, पत्नी और औरस पुत्र मेरी रक्षा करने में असमर्थ हैं। सूत्र -४४२
__ परमार्थानुगामी भिक्षु इस अर्थ को समझकर निर्मम और निरहंकार होकर निजोक्त धर्म का आचरण करे । सूत्र-४४३
वित्त, पुत्र, ज्ञातिजन और परिग्रह का त्याग कर, अन्त में श्रोत को छोड कर भिक्ष निरपेक्ष विचरण करे। सूत्र-४४४
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, तृण, वृक्ष और सबीजक, अण्डज, पोतज, जरायुज, रसज, संस्वेज और उद्भिज्ज (ये जीव) हैं। सूत्र -४४५
हे विज्ञ ! षटकायिक जीवों को जानो । मन, काय एवं वाक्य से आरम्भी एवं परिग्रही मत बनो। सूत्र -४४६
हे विज्ञ ! मृषावाद, बहिद्ध (बाह्य वस्तु) एवं अयाचित अवग्रह को लोक में शस्त्रादान/शस्त्र-प्रयोग समझो । सूत्र -४४७
हे विज्ञ ! माया, लोभ, क्रोध और मान को लोक में धूर्त-क्रिया समझो। सूत्र - ४४८
हे विज्ञ ! प्रक्षालन, रंगना, वमन, विरेचन, वस्तिकर्म, शिरोवेध को समझो और उसको त्यागो। सूत्र -४४९
हे विज्ञ ! गंध, माल्य, स्नान, दन्तप्रक्षालन, परिग्रह और स्त्रीकर्म को समझो। सूत्र -४५०
हे विज्ञ ! ओद्देशिक, क्रीतकृत, प्रामित्य (उधार लिये गए) आहृत पूतिनिर्मित और अनैषणीय आहार को समझो/त्यागो। सूत्र -४५१
हे विज्ञ ! आशूनि (शक्ति-वर्धक) अक्षिराग, रसासक्ति, उत्क्षालन और कल्क (उबटन) को समझो/त्यागो । सूत्र-४५२
हे विज्ञ! संप्रसारी(असंयत भाषी), कृतक्रिया प्रशंसक, ज्योतिष्क और सागरिक पिण्ड को समझो /त्यागो
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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