Book Title: Agam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्'
श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-४६८
प्राप्त काम भोगों की अभिलाषा न करे, यह विवेक कहा गया है । बुद्धों के पास सदा आचरण की शिक्षा प्राप्त करें। सूत्र -४६९
जो वीर, आत्मप्रज्ञा के अन्वेषी, धृतिमान् और जितेन्द्रिय है, ऐसे सुप्रज्ञ और सुतपस्वी आचार्य की सुश्रुषा करे। सूत्र -४७०
गृह की दीप (प्रकाश) न देखने वाले मनुष्य भी (प्रव्रज्या में) पुरुषादानीय हो जाते हैं । वे बन्धन-मुक्त वीर जीने की आकांक्षा नहीं करते हैं। सूत्र - ४७१
(मुनि) शब्द और स्पर्श से अनासक्त तथा आरम्भ में अनिश्रित रहे । जो पूर्व में कहा गया है, वह सर्व समयातीत है। सूत्र - ४७२
पंडित मुनि अतिमान, माया और सभी गौरवों को जानकर निर्वाण की खोज करे । -ऐसा मैं कहता हूँ।
अध्ययन-९ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (सूत्रकृत) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद'
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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