Book Title: Agam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 45
________________ आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक अध्ययन-११- मार्ग सूत्र-४९७ मतिमान् माहन द्वारा कौन सा मार्ग प्रवेदित है ? जिस ऋजु मार्ग को पाकर दुस्तर प्रवाह को पार किया जा सकता है। सूत्र - ४९८ हे भिक्षु! शुद्ध, सर्व दुःख विमोक्षी एवं अनुत्तर उस मार्ग को जैसे आप जानते हैं, हे महामुने! वैसे ही कहें। सूत्र-४९९ यदि कोई देव अथवा मनुष्य हमसे पूछे तो उन्हें कौन सा मार्ग बतलाएं, यह हमें बताइए। सूत्र-५०० यदि कुछ देव या मनुष्य तुमसे पूछे तब उन्हें जो संक्षिप्त मार्ग कहा जाए वह मुझसे सूनो । सूत्र -५०१ काश्यप द्वारा प्रवेदित मार्ग बड़ा कठिन है, जिसे प्राप्त कर अनेक लोग समुद्र व्यापारी (की तरह)सूत्र -५०२ (संसार-सागर को) तर गए हैं, तर रहे हैं और भविष्य में तरेंगे । उसे सूनकर जो कहूँगा उसे हे प्राणियों ! मुझसे सूनो। सूत्र-५०३ ____ पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, बीज, तृण और वृक्ष-ये सभी जीव पृथक्-पृथक् सत्व (अस्तित्व) वाले हैं । सूत्र -५०४ इनके अतिरिक्त त्रस प्राणी होते हैं । इस प्रकार षट्काय बताये गए हैं । जीव-काय इतने ही हैं । इनके अतिरिक्त कोई जीवकाय नहीं हैं। सूत्र - ५०५ मतिमान सभी युक्तियोंसे जीवों का प्रतिलेखन करे। सभी प्राणियोंको दुःख अप्रिय है अतः सभी अहिंस्य हैं सूत्र-५०६ यही ज्ञानियों का सार है कि वह किसी की हिंसा नहीं करता है । समता अहिंसा है इतना ही उसे जानना चाहिए। सूत्र -५०७ ऊर्ध्व, अधो और तिर्यक् लोक में जितने भी त्रस और स्थावर जीव हैं, सर्वत्र हिंसा से विरत रहे (क्योंकि) शान्ति को निर्वाण कहा गया है। सूत्र - ५०८ प्रभु/ज्ञान मनीषी दोषों का निराकरण कर किसी के साथ मन, वचन, काया से आजीवन वैर-विरोध न करे। सूत्र - ५०९ संवृत्त महाप्राज्ञ और धीर दत्तैषणा की चर्या करे । अनैषणीय का त्याग करे एवं नित्य एषणा-समिति का पालन करे। सूत्र-५१० जीवों का समारम्भ कर साधु के उद्देश्य से निर्मित अन्नपान सुसंयती ग्रहण न करे । सूत्र - ५११ पूतिकर्म का सेवन न करे यही वृषीमत धर्म है । जहाँ किञ्चित् भी आशंका हो वह सर्वथा अकल्पनीय है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 45

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