Book Title: Agam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्'
श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-५२७
वैसे ही कुछ मिथ्यादृष्टि अनार्य श्रमण सम्पूर्ण स्रोत संसार में पड़कर महाभय प्राप्त करते हैं । सूत्र -५२८
काश्यप द्वारा प्रवेदित धर्म को अङ्गीकार कर मुनि महाघोर स्रोत तर जाए । आत्मभाव से परिव्रजन करे। सूत्र - ५२९
वह ग्राम्यधर्मों से विरत होकर जगत में जितने भी प्राणी हैं उन्हें आत्मतुल्य जानकर पराक्रम करता हुआ परिव्रजन करे। सूत्र-५३०
पण्डित मुनि अतिमान और माया को जानकर उनका निराकरण कर निर्वाण का संधान करे। सूत्र - ५३१
उपधान वीर्य भिक्षु साधु-धर्म का संधान करे और पाप धर्म का निराकरण करे । क्रोध और मान की प्रार्थना न करे। सूत्र - ५३२
जो अतिक्रान्त बुद्ध और जो अनागत बुद्ध हैं, उनका स्थान शान्ति है जैसे भूतों/प्राणियों के लिए पृथ्वी होती है। सूत्र - ५३३
व्रत सम्पन्न मुनि ऊंचे-नीचे स्पर्श से स्पर्शित होता है । पर वह उनसे वैसे ही विचलित न हो, जैसे वायु से महापर्वत विचलित नहीं होता। सूत्र-५३४
संवृत, महाप्राज्ञ, धीर साधु दूसरों के दिए हुए आहार आदि की एषणा करे । निर्वृत काल की आकांक्षा करे। यही केवली-मत है । - ऐसा मै कहता हूँ।
अध्ययन-११ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद'
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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