Book Title: Agam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 46
________________ आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र- ५१२ आत्मगुप्त, जितेन्द्रिय हिंसा/हिंसक का अनुमोदन न करे । ग्राम या नगरों में श्रद्धालुओं के स्थान होते हैं। सूत्र - ५१३ कोई पूछे, अमुक कार्य में पुण्य है या नहीं । तो पुण्य है-ऐसा भी न कहे अथवा पुण्य नहीं है ऐसा भी न कहे । यह कहना महाभयकारक है। सूत्र - ५१४ दानार्थ जितने भी त्रस और स्थावर प्राणी मारे जाते हैं उनके संरक्षणार्थ पुण्य है-यह भी न कहे। सूत्र-५१५ जिनको देने के लिए पूर्वोक्त अन्नपान बताया जाता है उसमें लाभान्तराय है अतः पुण्य नहीं है-यह न कहे। सूत्र - ५१६ जो इस दान की प्रशंसा करते हैं, वे प्राणीवध की ईच्छा करते हैं। जो दान का प्रतिषेध करते हैं, वे उनकी वृत्ति का छेदन करते हैं। सूत्र -५१७ दान में पुण्य है या नहीं है जो ये दोनों ही नहीं कहते हैं वे कर्माश्रव का निरोध कर निर्वाण प्राप्त करते हैं। सूत्र-५१८ जैसे नक्षत्रों में चन्द्रमा श्रेष्ठ है वैसे ही बुद्ध/तीर्थंकर का निर्वाण श्रेष्ठ है । अतः सदा दान्त एवं यत्नशील मुनि निर्वाण का संधान करे । सूत्र - ५१९ (संसार-प्रवाह में) प्रवाहीत, स्वकर्मों से छिन्न प्राणीयों के लिए प्रभु ने साधुक/कल्याणकारी द्वीप का प्रतिपादन किया है । इसे 'प्रतिष्ठा' कहा जाता है। सूत्र - ५२० जो आत्मगुप्त, दान्त, छिन्न स्रोत एवं निराश्रव हैं, वह शुद्ध प्रतिपूर्ण अनुपम धर्म का आख्यान करता है। सूत्र - ५२१ उससे अनभिज्ञ अबुद्ध स्वयं को बुद्ध कहते हैं । हम बुद्ध हैं-ऐसा मानने वाले समाधि से दूर हैं। सूत्र - ५२२ वे बीज, सचित्त जल एवं उद्देश्य से निर्मित आहार ग्रहण कर ध्यान ध्याते हैं । वे अक्षेत्रज्ञ और असमाहित सूत्र -५२३ जैसे ढंक, कंक, कुरर, मद्गु और शिखी मछली की एषणा का ध्यान करते हैं, वैसे ही वे कलुष और अधम ध्यान करते हैं। सूत्र - ५२४ इसी तरह कुछ मिथ्यादृष्टि अनार्य श्रमण विषय एषणा का कंक की तरह ध्यान करते हैं । अतः वे कलुष और अधम हैं। सूत्र - ५२५ उन्मार्गगत कुछ दुर्बुद्धि शुद्ध मार्ग की विराधना कर दुःख तथा मरण की एषणा करते हैं। सूत्र - ५२६ जैसे जन्मान्ध व्यक्ति आस्राविणी नाव पर आरूढ होकर नदी पार करने की ईच्छा करता है, पर मझधार में ही विषाद प्राप्त करता है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 46

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