Book Title: Agam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्'
श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक
सूत्र-४२७
(मुनि) हाथ, पैर, मन, सर्व-इन्द्रियों, पाप परिणाम एवं भाषा दोष को संयत करे । सूत्र-४२८
ज्ञानी उस दोष को जानकर किञ्चित् भी मान और माया न करे । वह स्नेह-उपशान्त होकर विचरण करे । सूत्र - ४२९
प्राणों का अतिपात न करे, अदत्त भी न ले एवं माया-मृषावाद न करे । यही वृषीमत (जितेन्द्रिय) का धर्म
सूत्र-४३०
वचन का अतिक्रमण न करे, मन से भी ईच्छा न करे । सर्वतः संवत और दान्त होकर आदान को तत्परता से संयत करे। सूत्र-४३१
आत्म गुप्त, जितेन्द्रिय कृत, कारित और किये जाने वाले सभी पापों का अनुमोदन नहीं करते हैं। सूत्र-४३२
जो अबुद्ध महानुभाव वीर एवं असम्यक्त्वदर्शी हैं, उनका पराक्रम अशुद्ध एवं सर्वतः कर्मफल युक्त होता
सूत्र - ४३३
जो बुद्ध, महाभाग, वीर और सम्यक्त्वदर्शी हैं, उनका पराक्रम शुद्ध और सर्वतः कर्मफल रहित होता है। सूत्र-४३४
जो महाकुल से निष्क्रान्त हैं, वे दूसरों से अपमानित होने पर आत्म प्रशंसा नहीं करते हैं, उनका तप शुद्ध होता है। सूत्र-४३५
सुव्रत अल्पपिण्डी, अल्पजलग्राही तथा अल्पभाषी बने, जिससे वह सदा क्षांत, अभिनिवृत्त, दान्त एवं वीतगृद्ध होता है। सूत्र-४३६
ध्यान-योग को समाहृत कर सर्वशः काया का व्युत्सर्ग करे । तितिक्षा को उत्कृष्ट जानकर मोक्ष पर्यन्त परिव्रजन करे । -ऐसा मैं कहता हूँ।
अध्ययन-८ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (सूत्रकृत्) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद'
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मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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