Book Title: Agam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 32
________________ आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक अध्ययन-६ - वीरस्तुति सूत्र-३५२ श्रमणों, माहणों, गृहस्थों और अन्य तीर्थकों ने पूछा-वह कौन है जिसने शाश्वत और अनुपम धर्म का समुचित समीक्षण कर निरूपण किया। सूत्र - ३५३ भिक्षु ! तुम यथातथ्य के ज्ञाता हो, जैसा तुमने सूना है, जैसा निश्चित किया है वैसा कहो-ज्ञात पुत्र का ज्ञान, दर्शन और शील कैसा था ? सूत्र - ३५४ वे क्षेत्रज्ञ, कुशल, महर्षि, अनन्तज्ञानी और अनन्तदर्शी थे । उन यशस्वी और चक्षुस्पथ में स्थित ज्ञात पुत्र को तुम जानो और उनके धर्म एवं धैर्य को देखो। सूत्र - ३५५ ऊर्ध्व, अधो और तिर्यक् दिशाओं में जो त्रस और स्थावर प्राणी हैं, उन्हें नित्य अनित्य-दृष्टियों से समीक्षित कर प्रज्ञ ने द्वीप-तुल्य सद्धर्म का कथन किया है। सूत्र-३५६ वे सर्वदर्शी ज्ञानी होकर निरामगन्ध, धृतिमान, स्थितात्मा, सम्पूर्ण लोक में अनुत्तर विद्वान, अपरिग्रही, अभय और अनायु थे। सूत्र-३५७ वे भूतिप्रज्ञ प्रबुद्ध अनिकेतचारी, संसारपारगामी, धीर, अनंतचक्षु, तप्त सूर्यवत् अनुपम देदीप्यमान और प्रदीप्त अग्नि की तरह अंधकार में प्रकाशोत्पादक थे । सूत्र - ३५८ यह जिनधर्म अनुत्तर है आशुप्रज्ञ काश्यप मुनि इसके नेता हैं। जैसे स्वर्ग में महानुभाव इन्द्र विशिष्ट प्रभाव शाली एवं हजारों देवों में नेता होता है। सूत्र-३५९ वे प्रज्ञा से समुद्रवत् अक्षय महोदधि से पारगामी अनाविल/विशुद्ध, अकषायी मुक्त तथा देवाधिपति शुक्र की तरह द्युतिमान थे। सूत्र-३६० जैसे सुदर्शन सब पर्वतों में श्रेष्ठ है वैसे ही सुरालय में आनन्ददाता अनेक गुण सम्पृक्त वे ज्ञातपुत्र वीर्य से प्रतिपूर्ण वीर्य हैं। सूत्र-३६१ सुमेरु का प्रमाण एक लाख योजन है । वह तीन काँडों वाला तथा पांडुक से सुशोभित है। निन्यानवे हजार योजन ऊंचा है तथा एक हजार योजन अधोभाग में है। सूत्र - ३६२ वह गगनचुम्बी सुमेरु पृथ्वी पर स्थित है । जिसकी सूर्य परिक्रमा करता है । वह हेमवर्णीय एवं बहु आनन्द दायी है । वहाँ महेन्द्र आनंदानुभव करते हैं । सूत्र - ३६३, ३६४ वह पर्वत अनेक शब्दों से प्रकाशमान है । कंचनवीय है । वह गिरिवर पर्वतों में अनुत्तर है । दुर्गम है और आकाश की तरह दिव्य है ।वह नगेन्द्र पृथ्वी के मध्य स्थित है, सूर्य की तरह शुद्ध लेश्या व्यक्त करता है । वह अपने श्रेय से विविध वर्णीय, मनोरम है और रश्मिमालवत् प्रकाशित हो रहा है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 32

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