Book Title: Agam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 35
________________ आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक अध्ययन-७ - कुशीलपरिभाषित सूत्र - ३८१, ३८२ पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, तृण, बीज और त्रस प्राणी अण्डज, जरायुज, संस्वेदज और रसज यह जीव समूह है । इसे जीवनिकाय कहते हैं । इन्हें जानो एवं इनकी साता को देखो । इन कायों का घात करने वाला पुनः पुनः विपर्यास प्राप्त करता है। सूत्र - ३८३ त्रस और स्थावर जीवों के जातिपथ/विचरणमार्ग में प्रवर्तमान मनुष्य घात करता है । वह अज्ञानी नाना प्रकार के क्रूर कर्म करता हुआ उसी में निमग्न रहता है। सूत्र - ३८४ वे प्राणी इस लोक में या परलोक में, तद्रूप में या अन्य रूप में, संसार में आगे से आगे परिभ्रमण करते हुए दुष्कृत का बन्धन एवं वेदन करते हैं। सूत्र-३८५ जो श्रमणव्रती माता-पिता का त्याग अग्नि का समारम्भ करता है एवं आत्मसुख के लिए प्राणिघात करता है, वह लोक में कुशीलधर्मी कहा गया है। सूत्र - ३८६ प्राणियों का अतिपात अग्नि ज्वालक भी करता है एवं निर्वापक भी । अतः मेघावी पण्डित धर्म का समीक्षण कर अग्नि-समारम्भ न करे । सूत्र - ३८७ पृथ्वी भी जीव है और जल भी जीव है । सम्पतिम प्राणी गिरते हैं । संस्वेदज व काष्ठाश्रित भी जीव हैं, अतः अग्नि-समारम्भक इन जीवों का दहन करता है। सूत्र-३८८ हरित जीव आकार धारण करते हैं । वे आहार से उपचित एवं पृथक्-पृथक् हैं । जो आत्म-सुख के लिए इनका छेदन करता है, वह धृष्टप्रज्ञ अनेक जीवों का हिंसक है। सूत्र - ३८९ उत्पत्ति, बुद्धि और बीजों का विनाशक असंयत और आत्म-दंडी है । जो आत्म-सुख के लिए बीजों को नष्ट करता है, वह अनार्यधर्मी कहा गया है। सूत्र - ३९० कुछ जीव गर्भ में बोलने, न बोलने की आयु में पंचशिखी कुमारावस्था में मर जाते हैं, तो कुछ युवा, प्रौढ़ और वृद्धावस्था में आयु-क्षय होने पर च्युत हो जाते हैं । सूत्र - ३९१ अतः हे जीवों ! मनुष्यत्व-सम्बोधि प्राप्त करो। भय को देखकर अज्ञान को छोड़ो । यह लोक ज्वर से एकान्त दुःखरूप है । (जीव) स्वकर्म से विपर्यास पाता है। सूत्र-३९२ ___ इस संसार में कईं मूढ आहार में नमकवर्जन से मोक्ष कहते हैं । कुछ शीतल जल-सेवन से और कुछ हवन से मोक्षप्राप्ति कहते हैं। सूत्र-३९३ प्रातः स्नानादि से मोक्ष नहीं है, न ही क्षार-लवण के अनशन से है । वे मात्र मद्य, माँस और लहसून न खाकर अन्यत्र निवास (अमोक्ष) की कल्पना करते हैं । मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 35

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