Book Title: Agam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 27
________________ आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-२८८ संदशक, कधी और केश कंकण लाओ, दर्पण प्रदान करो । दन्त प्रक्षालन का साधन दो । सूत्र - २८९ सुपारी, ताम्बूल, सूई-धागा, मूत्र-पात्र, मोय मेह (पीकदान), सूप, ऊखल एवं गालन के लिए पात्र लाओ। सूत्र - २९० आयुष्मन् ! पूजा-पात्र और लघु-पात्र लाओ । शौचालय का खनन करो । पुत्र के लिए शरपात (धनुष) एवं श्रामणेर के लिए गोरथक (तीन वर्ष का बैल) लाओ। सूत्र - २९१ कुमार के लिए घंटा, डमरू, और वस्त्र से निर्मित गेंद लादो । भर्ता ! देखो वर्षा ऋतु सन्निकर है, अतः आवास की शोध करो। सूत्र - २९२ नव सूत्र निर्मित आसन्दिक (चारपाई) और संक्रमार्थ/चलने के लिए काष्ठपादुका लाओ । पुत्र-दोहद पूर्ति के लिए भी ये दास की तरह आज्ञापित होते हैं। सूत्र - २९३ पुत्र उत्पन्न होने पर आज्ञा देती है इसे ग्रहण करो अथवा छोड़ दो। इस तरह कुछ पुत्र-पोषक ऊंट की तरह भारवाही हो जाते हैं। सूत्र - २९४ रात्रि में जागृत होने पर पुत्र को धाय की तरह पुनः सूलाते हैं । वे लज्जित होते हुए भी रजक की तरह वस्त्र प्रक्षालक हो जाते हैं। सूत्र - २९५ इस प्रकार पूर्व में अनेकों ने ऐसा किया है। जो भोगासक्त हैं वे दास, मृग एवं पशुवत् हो जाते हैं । वे पशु के अतिरिक्त कुछ नहीं हो पाते । सूत्र - २९६ इस प्रकार उन (स्त्रियों) के विषय में विज्ञापित किया गया । भिक्षु स्त्री संस्तव एवं संवास का त्याग करे । ये काम वृद्धिगत है, इन्हें वर्षीकर कहा गया है। सूत्र - २९७ ये भयोत्पादक है । श्रेयस्कर नहीं है । अतः भिक्षु आत्म-निरोध करके स्त्री, पशु, स्वयं एवं प्राणियों (के गुह्यांगों) का स्पर्श न करे। सूत्र - २९८ विशुद्ध लेश्यी, मेघावी, ज्ञानी परक्रिया (स्त्री-सेवन) न करे । वह अनगार मन, वचन और काया से सभी स्पर्शों को सहन करे। सूत्र - २९९ इस तरह वीर ने कहा है-राग और मोह को धुनने वाला भिक्षु है । इसलिए अध्यात्म-विशुद्ध सुविमुक्त भिक्षु मोक्ष अनुष्ठान में प्रवृत्त रहे। अध्ययन-४ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 27

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