Book Title: Agam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 28
________________ आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक अध्ययन-५- नरकविभक्ति उद्देशक-१ सूत्र-३०० मैंने केवली महर्षि से पूछा कि नरक में क्या अभिताप है । मुने ! मैं इस तथ्य से अनभिज्ञ हूँ आप अभिज्ञ हैं। अतः कहें कि अज्ञानी नरक में कैसे जाते हैं ? सूत्र-३०१ मेरे द्वारा ऐसे पूछने पर महानुभाव, आशुप्रज्ञ, काश्यप ने यह कहा कि यह दूर्ग/विषम एवं दुःखदायी है। जिसमें दीन एवं दुराचारी जीव रहते हैं, मैं प्रवेदित करूँगा। सूत्र - ३०२, ३०३ इस संसार में कुछ जीवितार्थी मूढ़ जीव रौद्र पाप कर्म करते हैं, वे घोर, सघन अन्धकारमय, तीव्र सन्तप्त नरक में गिरते हैं । जो आत्म-सुख के निमित्त त्रस और स्थावर जीवों की तीव्र हिंसा करता है, भेदन करता है, अदत्ताहारी है और सेवनीय का किंचित् अभ्यास नहीं करता है। सूत्र - ३०४ प्रमादी अनेक प्राणियों का अतिपाती, अनिवृत्त एवं अज्ञानी आघात पाता है । अन्तकाल में निन्दने रात्रि की ओर जाता है और अधोशिर होकर नरक में उत्पन्न होता है। सूत्र-३०५, ३०६ हनन करो, छेदन करो, भेदन करो, जलाओ-परमाधर्मियों के ऐसे शब्द सुनकर वे नैरयिक भय से असंज्ञी हो जाते हैं और आकांक्षा करते हैं कि हम किस दिशा में चलें। वे प्रज्वलित अङ्कार राशि के समान ज्योतिमान भूमि पर चलते हैं, दह्यमान करुण क्रन्दन करते हैं । वहाँ चिरकाल तक रहते हैं। सूत्र-३०७-३०९ तुमने क्षुरे जैसी तीक्ष्णश्रोता अति दुर्गम वैतरणी नदी का नाम सुना होगा । बाणों से छेदित एवं शक्ति से हन्यमान वे दुर्गम वैतरणी नदीमें तैरते हैं । वहाँ क्रूरकर्मी नौका के निकट आते ही उन स्मृतिविहीन जीवों के कण्ठ कीलसे बाँधते हैं । अन्य उन्हें दीर्घ शूलों और त्रिशूलों से बींधकर गिराते हैं । कुछ जीवोंके गलेमें शिला बाँधकर उन्हें गहरे जल में डूबो देते हैं । फिर कलम्बु पुष्प समान लाल गर्म बालु में और मुर्मराग्नि में लोट-पोट करते हैं, पकाते हैं सूत्र -३१०, ३११ महासंतापकारी, अन्धकाराच्छादित, दुस्तर तथा सुविशाल असूर्य नामक नरक है जहाँ उर्ध्व, अधो एवं तिर्यक दिशाओं में अग्नि धधकती रहती है । जिस गुफा में लुप्तप्रज्ञ, अविज्ञायक, सदा करुण एवं ज्वलनशील स्थान के अति दुःख को प्राप्त कर नरक जलने लगता है। सूत्र-३१२ क्रूरकर्मा चतुराग्नि प्रज्वलित कर नरक को अभितप्त करते हैं । वे अभितप्त होकर वहाँ वैसे ही रहते हैं जैसे अग्नि में जीवित मछलियाँ रहती हैं। सूत्र -३१३ संतक्षण नामक महाभितप्त नरक है, जहाँ अशुभकर्मी नारकियों को हाथ एवं पैर बाँधकर हाथ में कुठार लेकर उन्हें फलक की तरह छीला जाता है। सूत्र-३१४-३१७ रुधिर से लिप्त, मल से लतपथ, भिन्नांग एवं परिवर्तमान नैरयिकों को कड़ाही में जीवित मछलियों की तरह उलट-पलट कर पकाते हैं ।वे वहाँ राख नहीं होते हैं और न ही तीव्र वेदना से मरते हैं । वे अपने कृतकर्म का वेदन करते हैं और वे दुःख दुष्कृत से और अधिक दुःखी होते हैं ।वहाँ शीत से सन्त्रस्त होकर प्रगाढ़ सुतप्त अग्नि मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 28

Loading...

Page Navigation
1 ... 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114