Book Title: Agam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्'
श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-१७८
आत्मघाती आचार वाले, मिथ्यात्वस्थित, हर्ष और द्वेष से युक्त कुछ अनार्य-पुरुष साधु को पीड़ा देते हैं । सूत्र-१७९
कुछ अज्ञानी लोग सुव्रती भिक्षु को गुप्तचर एवं चोर समझकर कषाय-वचन से बाँध देते हैं। सूत्र - १८०
वहाँ डंडे, मुष्टि अथवा फलक से पीटे जाने पर वह अज्ञ अपने ज्ञातिजनों को वैसे ही याद करता है, जैसे क्रुद्धगामी स्त्री याद करती है। सूत्र - १८१
हे वत्स ! ये समस्त स्पर्श दुस्सह और कठोर है । इनसे विवश होकर भिक्षु वैसे ही घर लौट आता है, जैसे बाणों से आहत हाथी। -ऐसा मैं कहता हूँ।
अध्ययन-३ - उद्देशक-२ सूत्र - १८२
ये सभी सूक्ष्म संग (सम्बन्ध) भिक्षुओं के लिए उपसर्ग है । यहाँ जो कोई साधु विषदा करते हैं, वे संयमयापन में समर्थ नहीं हो पाते। सूत्र - १८३
कुछ ज्ञातिजन प्रव्रज्यमान भिक्षु को देखकर/घेरकर रोते हैं । कहते हैं तात ! हमारा पालन-पोषण करो, हमें संतुष्ट करो, हमें किसलिए छोड़ रहे हो? सूत्र - १८४
हे तात ! तुम्हारे पिता वृद्ध हैं, यह तुम्हारी बहिन छोटी है, तात ! तुम्हारे ये सहोदर आज्ञाकारी हैं, फिर तुम हमें क्यों छोड़ रहे हो? सूत्र - १८५
तात ! तुम माता-पिता का पोषण करो, इससे लोक सफल होगा । तात ! लौकिक-व्यवहार यही है कि माता-पिता का पालन करना चाहिए। सूत्र - १८६
तात ! तुम्हारे उत्तरोत्तर उत्पन्न और मधुरभाषी छोटे-छोटे पुत्र हैं । तात ! तुम्हारी पत्नी नवयौवना है, अतः वह अन्यजन के पास न जा सके। सूत्र - १८७
हे तात ! आप घर चलिए । घर का कोई भी काम मत करना । हम सब कार्य संभालेंगे । आप एक दफा से नीकल गए हैं। अब आप वापस अपने घर पधारीए । सूत्र - १८८
अगर आप एकबार घर आकर, स्वजनों को मिल जाएंगे तो आप अश्रमण नहीं बन जाएंगे । गृहकार्य में ईच्छा रहित होकर अपनी रुचि अनुसार कार्य करे तो भी आपको कौन रोकने वाला है ? सूत्र - १८९
हे तात ! आपके ऊपर जो कर्ज था वह भी हमने बाँट लिया है और आपको व्यवहार चलाने के लिए जितना धन-सुवर्ण आदि चाहिए वह भी हम आपको देंगे। सूत्र - १९०
___इस प्रकार करुणार्द्र हो कर बन्धु साधु को शिक्षा वचन कहते हैं । उस ज्ञातिजनों के संग से बंधा हुआ भारे कर्मी आत्मा प्रव्रज्या छोड़कर घर वापस आ जाता है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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