Book Title: Agam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्'
श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-१४१
विश्व-सर्वदर्शी, ज्ञातक-मुनि महावीर ने सामायिक का प्रतिपादन किया है । वह न तो अनुश्रुत है, न ही अनुष्ठित है। सूत्र - १४२
इस प्रकार महान अन्तर को जानकर, धर्म-सहित होकर, गुरु की भावना का अनुवर्तन कर कईं विरत मनुष्यों ने संसार-समुद्र पार किया है । -ऐसा मैं कहता हूँ।
अध्ययन-२ - उद्देशक-३ सूत्र-१४३
संवृत्तकर्मी भिक्षु के लिए अज्ञानता से जो दुःख स्पृष्ट होता है, वह संयम से क्षीण होता है । पंडित-पुरुष मरण को छोड़कर चले जाते हैं। सूत्र - १४४
जो विज्ञापन से अनासक्त हैं, वे तीर्णपुरुष के समान कहे गए हैं । अतः ऊर्ध्व (मोक्ष) को देखो, काम को रोगवत् देखो। सूत्र - १४५
जैसे वणिक द्वारा आनीत उत्तम वस्तु को राजा ग्रहण करता है, वैसे ही संयमी रात्रि-भोजन-त्याग आदि परम महाव्रतों को धारण करते हैं। सूत्र - १४६
जो सुखानुगामी अत्यासक्त, काम-भोग में मूर्च्छित और कृपण के समान धृष्ट हैं, वे प्रतिपादित समाधि को नहीं जान सकते। सूत्र - १४७
जैसे व्याधि से विक्षिप्त एवं प्रताड़ित बैल बलहीन हो जाता है, दुर्बल होकर भार वहन नहीं कर सकता, क्लेश पाता है। सूत्र-१४८
इसी तरह कामैषणा का ज्ञाता आज ही या कल संसर्ग/संस्तव को छोड़ दे । कामी होकर लभ्य-अलभ्य कामों की कामना न करे। सूत्र - १४९
बाद में असाधुता न हो, इसलिए स्वयं को अनुशासित कर ले । जो असाधु होता है, वह अत्यधिक शोक, प्रकम्पन एवं विलाप करता है। सूत्र-१५०,१५१
इस लोक में जीवन को देखे । सौ वर्षायु युवावस्था में ही टूट जाता है । अतः जीवन अल्पकालीन निवास समान समझो । गृद्ध मनुष्य काम-भोगों में मूर्च्छित है ।जो आरम्भ-निश्रित, आत्मदंडी, एकान्त-लूटेरे हैं, वे पापलोक में जाते हुए आसुरी-दिशा में चिरकाल तक रहेंगे। सूत्र - १५२
____ जीवन सुसंस्कृत नहीं कहा जा सकता, तथापि बाल-पुरुष प्रगल्भता करता है । वह कहता है मुझे वर्तमान से कार्य है. अनागत-परलोक को किसने देखा है? सूत्र - १५३
हे अदृष्ट ! प्रत्यक्षदर्शी द्वारा प्ररूपित धर्म पर श्रद्धा करे । खेद है कि कृतमोहनीय कर्म से दर्शन निरुद्ध होता है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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