Book Title: Agam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्'
श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-११४
संशुद्ध-श्रमण संयम में स्थित रहकर अहङ्कार-शून्य होकर समता में परिव्रजन करता है । समाहित-पंडित मृत्युकाल तक संयमाराधन करता है। सूत्र - ११५
दूरदृष्टि-मुनि अतीत और अनागत-धर्म का अनुपश्यी है । माहण (ज्ञानी) कठोर वचनों से आहत होने पर सिद्धांत/समत्व में रत रहता है। सूत्र-११६
प्रज्ञावान मुनि सदा समता-धर्म का उपदेश दे । सूक्ष्मदर्शी ज्ञानी न तो कभी क्रोध करे, न मान करे । सूत्र-११७
जो बहुजन नमन के लिए सभी अर्थो/विषयों से अनिश्रित, सदा सरोवर की तरह स्वच्छ है, उसके लिए काश्यपधर्म प्रकाशित किया है। सूत्र - ११८ ___अनन्त-प्राणी पृथक्-पृथक् हैं । प्रत्येक प्राणीमें समता है, जो मौन-पद (मुनि-पद)में स्थित है, वह पण्डित विरति का पालन करे-घात न करे । सूत्र-११९, १२०
धर्म का पारगामी एवं आरम्भ/हिंसा के अंतमें स्थित मुनि है, परन्तु ममत्व-युक्त पुरुष शोक करते हैं, तथापि अपने परिग्रह को नहीं पाते हैं । ज्ञानी को (परिग्रह) इस लोकमें भी दुःखदायी और परलोकमें भी दुःखदायी है। ऐसा विध्वंसधर्मा ज्ञानी गृह-निवास कैसे कर सकता है ? सूत्र-१२१
___ महान् परिगोप (कीचड़) को जानकर भी जो वंदन-पूजन से सूक्ष्म शल्य को नहीं नीकाल पाता है, उस ज्ञानी को संस्तव छोड़ देना चाहिए। सूत्र - १२२
भिक्षु सदा वचन का संयम, मन का संवर एवं उपधान-वीर्य (तपो-बली) होकर एकाकी विचरण करे । कायोत्सर्ग, शयन एवं ध्यान अकेले ही करे । सूत्र - १२३
मुनि शून्य-गृह का द्वार बन्द न करे, न खोले । पूछने पर न बोले, घर का परिमार्जन न करे और न ही तृणसंस्तार करे। सूत्र-१२४
मुनि सूर्यास्त होन पर सम एवं विषम स्थान पर अनाकूल रहे । वहाँ चरक या रेंगने-वाले, भैरव या खून चूसने वाले, सरीसृप हो तो भी वहाँ रहे । सूत्र - १२५
शून्य-गृह में स्थित महामुनि तिर्यक्, मनुज, दिव्यज-तीनों उपसर्गों को सहन करे । भय से रोमांचित न हो। सूत्र - १२६
वह भिक्षु जीवन का आकांक्षी न बने एवं न ही पूजन का प्रार्थी बने । शून्यगृहमें स्थित भिक्षु के भैरव आदि प्राणी अभ्यस्त/सह्य हो जाते हैं। सूत्र - १२७
उपनीत (आत्मरत) चिन्तनशील, एकांत स्थान का सेवन करने वाले एवं भय से अविचलित रहने वाले साधु के सामायिक होती है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (सूत्रकृत) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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