Book Title: Agam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्'
श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र - ६७
कुछ ब्राह्मण और श्रमण कहते हैं जगत् अंडे से उत्पन्न है । उस से ही तत्त्वों की रचना हुई है, जो इसे नहीं जानते, वे मृषा बोलते हैं। सूत्र - ६८
लोक अपनी पर्यायों से कृत है-यह कहना चाहिए । वे तत्त्व को नहीं जानते हैं क्योंकि यह लोक कभी विनाशी नहीं है। सूत्र - ६९
दुःख अमनोज्ञ की निष्पत्ति है, यह जानना चाहिए । जो उत्पत्ति को नहीं जानते हैं, वे संवर को कैसे जानेंगे? सूत्र - ७०
कुछ वादियों ने कहा कि आत्मा शुद्ध अपापक-पाप रहित है, किन्तु क्रीड़ा और प्रद्वेष के कारण वही अपराध करती है। सूत्र-७१
यह मनुष्य संवृत मुनि होता है, बाद में अपापक होता है । जैसे विकट जल ही रजसहित और रजरहित हो जाता है। सूत्र - ७२
मेघावी पुरुष इन वादों का अनुचिंतन/विवेचन करके ब्रह्मचर्य में वास करे । सभी प्रावादुक पृथक्-पृथक् हैं और वे अपनी अपनी बातों का आख्यान करते हैं। सूत्र-७३
(वे कहते हैं-) अपने-अपने सम्प्रदायमान्य अनुष्ठान से ही सिद्धि होती है, अन्यथा नहीं । वशवर्ती-पुरुष के अधोजगत् में भी सर्व काम समर्पित पूर्ण हो जाते हैं। सूत्र - ७४
कुछ वादी कहते हैं, वे (जन्मजात) सिद्ध और निरोगी हो जाते हैं । इस तरह सिद्धि को ही प्रमुख मानकर वे अपने आशय में ग्रथित/आबद्ध हैं। सूत्र - ७५
वे असंवृत मनुष्य इस अनादि संसार में बार-बार भ्रमण करेंगे । वे कल्प परिमित काल तक आसुर एवं किल्बिषिक स्थानों में उत्पन्न होते हैं। -ऐसा मैं कहता हूँ।
अध्ययन-१- उद्देशक-४ सूत्र - ७६, ७७
हे मुनि ! बाल-पुरुष स्वयं को पंडित मानते हुए विजयी होने पर भी शरण नहीं हैं । वे पूर्व संयोगों को छोड़कर भी कृत्यों (गृहस्थ-धर्म) के उपदेशक हैं । विद्वान भिक्षु उनके मत को जानकर उनमें मूर्छा न करे । अनुत्कर्ष और अल्पलीन मुनि मध्यस्थ-भाव से जीवन-यापन करे। सूत्र - ७८
कुछ दार्शनिकों ने कहा है कि परिग्रह और हिंसा करते हुए भी मुनि हो सकते हैं, किन्तु ज्ञानी भिक्षु अपरिग्रह और अनारम्भ को भिक्षुधर्म जानकर हिंसादि परिव्रजन करे । सूत्र - ७९
विद्वान मुनि गृहस्थ-कृत आहार की एषणा/याचना करे और प्रदत्त आहार को ग्रहण करे । वह आहार में अगृद्ध और विप्रमुक्त होकर अवमान का परिवर्जन करे ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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